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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org 98 श्रभिपीड़नम् श्रग्निपर्णी, अदरख, चित्रक, भांग, धरनी, मकोय इनके रसों में तीन दिन पर्यंत खरल करें, पुन: पञ्चपित्त (नॉर, भैंस, बकरी, सुर और राहू | अमिरोग abhiroga-० संज्ञा पुं० [सं०] मछली ) की भावना देवें, तदनन्तर बालुकायंत्र चौपायों का एक रोग जिसमें जीभ में कीड़े पड़ में अन् पा में बन्द कर एक दिन तक रचाएँ, जाते हैं । जब स्वांग शीतल हो बारीक चूर्ण कर रखें । मात्रा-१ से ८ रत्ती । गुण- अदरख के रसके साथ दें और निगु एडी, दशमूल और त्रिकुटा का क्वाथ काली मिर्च मिलाकर पिलाएँ तो ग्रिदोषज ज्वरों को दूर करे | पथ्य - बकरी का दूध और रंगका यूप दें । वृ० रस० रा० सु० । श्रभिपीड़नम् abhipidanam-सं० लो० श्रभिचार ( An incantation to destroy. ) श्रभिमन्थः, -मन्युः abhimanthah, manyuh - सं० पु० नेत्ररोग | आई डिज़ीज़ ( Eye disease )। त्रिकः० | देखो - अधिमन्थ । अभिमर्दः abhimardah - सं० पुं० श्रवमई, पीड़न, पीड़ा ( Pain ) । अभिमर्दन abhimardana हिं० संघ. पुं० [सं०] ( १ ) पीसना | चूरचूर करना । (२) घस्सा | रगड़ | युद्ध | अभिमर्षणम् abhi marshanam - सं० क्ली० (१) यस पिशाच श्रादि भूतकृत पीड़ा । ० मा० । ( २ ) मनन, चिन्तन ( ३ ) परस्त्री गमन, परदारगामी । अभिमानितम् abhimánitam-खं० मैथुन, स्त्री संग | काइशन ( Coition ), | कप्युलेशन ( Copulation ) । त्रिका० । अभिमुख abhimukha - हिं० क्रि० वि० [सं०] सम्मुख, धागे, सामने, समक्ष ( Present, facing.) क्र. ० श्रभित्रि abhimukha - हिं० संज्ञा श्री० [ सं० ] श्रत्यन्त रुचि । पसन्द । प्रवृत्ति । तुष्टि, भलाई, स्वाद, चाह, रसज्ञान ( 'Taste. ) श्रभिरूपः abhirópah-सं० पुं० ] ( १ श्रभिरूप abhirupa दि० वि० । बुध, पंडित, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रभिशोचनम् विद्वान | ( २ ) रम्य, रमणीय, मनोहर, सुन्दर (३) कामदेव | मे० पचतुष्कं । मिल कपित्थः abhila kapitthah-सं० पु० ग्राम्रातक वृत्त, श्रमबाड़ा, श्रमहा (Spon dias mangifora.) श्रभितविक रोग abhilashika roga-हि० संज्ञा पुं० [सं०] वातव्याधि के चौरासी भेदों में से एक । श्रभिलात्रः abhiilávah - सं० पु० छेद, लो ( Hole, pore. ) । श्रम० । अभिलाषः abhiláshah-सं० पु० अभिलाष abhilasha - हिं० संज्ञा पुं० [वि० अभिलाषिक, अभिलाषी, अभिलाषुक, अभिलाषित ] । ( १ ) रमणेच्छा, प्रियसे मिलने की इच्छा । वियोग | रन० २० । ( २ ) आकाँक्षा, कामना, इच्छा, स्पृहा ( Desire. ) मनोरथ, चाह । अभिव्यापक abhivyapaka-हिं०वि० [सं०] [स्त्री० अभिव्यापिका ] पूर्ण रूप से फैलनेवाला ( Diffusible. ) श्रभिशप्त abhishapt - हिं० वि० [सं० ] शापित | जिसे शाप दिया गया हो । अभिशापित abhishapita - हिं० वि० [सं० ] देखो - श्रभिशप्त | अभिशस्तिपाः abhishastipáh सं० निंदनीय पाप मय रोगों से रक्षा करने वाला । श्रथवं० । सू० ७ । १४ । का०| अभिशाप: abhishápah - सं० पु० अभिशाप abhishapa - हिं० संज्ञा पुं० [वि० अभिशापित, श्रभिशप्त ] शाप, श्रनिष्ट प्रार्थना, बद दुश्रा, ब्राह्मण, गुरु, वृद्ध और सिद्ध यादि के शाप का नाम " श्रभिशाप" है । भा० म० २ | मा० नि० ज्व० । अभिशोचनम् abhisho-chanam- देखो For Private and Personal Use Only
SR No.020060
Book TitleAayurvediya Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1934
Total Pages895
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size27 MB
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