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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अभिक अभितापः against, with respect to. | अभिघार abhi-gharti-हिं० संज्ञा पु. (१) सामने, उ०-अभ्युत्थान | अभ्यागत । | अभिघार: abhi-ghārah-सं० पु. (२) बुरा, उ०-अभियुक्र । (१)(Ghee, clarified botter.) (३) इन्छा उ०-अभिलाषा । धत, घी । तूप-म० । रा०नि०व० १५ । (२) (४) समीप, उ०-अभिसारिका । गी से छौंकना व बघारना । (५) बारंबार, अच्छी तरह, उ०-अभ्यास । (३) सींचना, छिड़कना । (६) दूर, उ०-अभिहरण । अभिचारः abhi-charah-सं० (७) ऊपर, उ०-अभ्युदय । अभिचार abhi-chara-हिं. संज्ञा पु' । अभिक abhika-हिं० वि० [सं०] कामुक । | (An incantation to destroy.) कामी। विषयी। हिंसाकर्म, मारणमन्त्र-विशेष । मन्त्र श्रादि द्वास अभिगमन abhi-gamuna-हिं. संज्ञा पुं० | मारण प्रादि प्रयोग करना । किसी शत्रु की की [सं०] सहवास, संभोगं । हुई कृत्य आदि का उत्पन्न करना, किसी प्रकार अभिगामी abhi-gami-हिं० वि० [सं०] का अपघात, जादू से D चलाने का नाम अभि. [स्त्री० अभिगामिनी ] सहवास वा संभोग करने | चार है। भा० म० २ श्रागन्तुक ज्वर लक्षण बाला उ०-ऋतुकालाभिगामी । मा०नि० ज्व० । मंत्र आदि द्वारा उत्पन्न पीड़ा अभिघातः abhi-ghatah-सं० पुं० ।। र०मा०। यन्त्र मन्ध आदि श्रवपीड़न, “अभिअभिघात abhi-ghata-हिं० संज्ञा पु० भाराभिशापोत्थैः ।" रत्ना०। (१)(Woundl or blow) अभियात ! अभिचार abhichāra-सं० पू० तंत्र के प्रयोग हि. पु। श्राघात, चोट पहुँचना, ताड़न, दाँत । ___ जो छः प्रकार के होते हैं-मारण, मोहन, स्तंभन जो छः प्रकार के होते से काटना । प्रहार, मार। शत्र, मुक्का, ( चूँ सा) विद्वेषण, उच्चाटन और घशीकरण ।। और लाठी प्रादि की चोट का नाम अभिघात है। अभिचारक abhcharaka-हि संज्ञा पु. भा०म० २ श्रागन्तुक ज्वर लक्षण । "अभिघाता [सं०] अंत्र मंत्र द्वारा मारण, उच्च.चन प्रादि भिषणाभ्याम ।" (२) पुरुष की बाई और कर्म वि० यंत्र मंत्र द्वारा मारण उच्चाटन आदि और स्त्री की दाहिनी श्रोर का मसा । करने वाला। अभिघात ज्वरः abhi-ghata-jvarah-सं० अभिचार ज्यरः abhi.chāra jvarah-सं० go ( Acquired or Accidental To (Fever producerly incanta fever.) आघात जन्य प्रागन्तुक जबर अर्थात् tions) विपरीत मंत्र जपने से, लोहे के वा तलवार, छुरा, मुक्का, लाटी श्री शम्न आदि के से मारणार्थ सर्पपादिक होस वा कृत्य के प्रयोग लगने से उत्पन्न ज्वर । "अभिघाताभिचाराभ्यां करने से जो स्वर प्रकट होता है, उसे "अभिचार श्रागन्तुर्जायते ।" मा० नि. ( भाग० )। ज्वर" कहते हैं। ज्वर । श्राधात से प्रकुपित हुई वायु रत को दृवित | अभिचारी abhi-chari-हिं० वि० [सं० अभिकर व्यथा, शोफ वैवर्य और वेदना सहित ज्वर चारिन ] [ स्त्री. अभिचारिणी ] यंत्र मंत्र प्रादि को करती है। च०। का प्रमोग करने वाला। उक्र ज्वरों में दोष ज्वर के उत्पादक नहीं होते, लक्षण-इससे तथा अभिशाप से उत्पन्न ज्वर अपितु वे पश्च त् को उनके परिणाम स्वरूप होते में मोह और प्यास होती है । मा० नि0 ज्व०। हैं । सारांरा यह कि सर्व प्रथम प्राघात के कारण अभिताप: abhi-tāpah-सं० पु. (१) सज्वर उत्पन्न हो जाता है। फिर उस से दोपों का र्वाङ्ग ताप ( General heat ) । (२) प्रकोप होता है। अश्वज्वर ( forse fever)। गज० वै० । For Private and Personal Use Only
SR No.020060
Book TitleAayurvediya Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1934
Total Pages895
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size27 MB
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