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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अपामागे ४०६ श्रपामार्ग शीशी में डालकर उसमें इतना पाक का दूध डालें कि वह डूब जाए । तदनन्तर २१ रोज तक भूमि के भीतर गाद रक्खें। फिर एक बड़ी लोहे की कड़ाही में एक सेर अपामार्ग की भस्म विद्या कर हाथ मे दबा दें। उसके बीच में संखिया को रखकर ऊपर से एक सेर उक्र भस्म और विछाकर चारों ओर से भली प्रकार दबा दें। फिर उसपर ४ सेर रेत (बालू ) डाकर चूल्हा पर रखकर नीचे प्राग जला दें और रेत के ऊपर मकाई के कुछ दाने रख दें। ४ पहर अग्नि देने पर मकाई के दाने खिल जाएगे। बस अग्नि देना बन्द कर दे। दूसरे दिन जब वह अच्छी तरह शीतल हो जाए तब उसको धीरे-धीरे निकाल ले। श्वेत रंग की संखिया की भस्म प्रस्तुत होगी। माता। चावल का चतुर्थ भाग । गुण---श्वास के लिए अपूर्व औषध है। इसके अतिरिक बहुश: अन्य रोगों में भी उपयोगी है। कफ निर्गत होता है । यह दंतशूल की शर्तिया दवा है। दाँतों के हिलने और मसूढ़ों के कमजोर होने को दूर करता है । विशेषकर मुखदुर्गंधि के लिए अत्यंत लाभदायक है। इसकी जड़ पीसकर लगाने से स्तंभन होता है। इसके बीजों की खीर पका कर खाने से कई दिन तक तधा नहीं लगती और शक्ति भी यथावत बनी : रहती है। इसकी जड़ पीस कर स्तन पर प्रलेप करने से दृध बहुत उतरता है हस्तपाद पर मल नेसे क्षय रोग को लाभ होता है। इसकी जद की भम्म लगाने और खाने से । कण्ठमाला को प्राराम होता है। इसके पत्तों का रस मासूर ( नाडीव्रण) को । भरता है। इसके पुरातन वृक्ष की ग्रंथि में एक कीट निकलता है। इसको घिसकर पिलाने से बच्चों का अब्बा रोग दूर होता है। भस्मक रोग में जिसमें तीक्ष्णाग्नि के कारण अत्यधिक सुधा लगती है उसमें अपामार्ग लण्डन । चूर्ण १ तो० फाँक लेने से वह जाती रहती है। चिचड़ी की जद ६ मा०, कुकरौंधा के पत्र ६ मा० इनको सफ़ेद जीरा के साथ पीसकर उसमें मा० काले नमक का चूर्ण मिलाकर सेवन कर ने से उदरशूल, उदर जन्य वायु के लिए अत्यंत लाभप्रद और परीक्षित है। अपामार्ग के विभिन्न अंगों द्वारा कतिपय धातुओं की भस्मों के निर्माण-कम (१) अकीक भस्म-अपामार्ग के एक ! पाव कल्क में एक तोला अक़ीक़ रखकर कपड़मिट्टी कर सूखने पर निर्यात स्थान में ७-८ सेर भरने उपलों की अग्नि दें। शीतल होने पर निकाले । बस अपूर्व भस्म तैयार मिलेगी। मात्रा-२ रत्ती । सेवन-विधि--गाय के मक्खन ( गो नवनीत) के साथ सेवन करें। गुण-हृदय की निर्बलता में उपयोगी है। (२) सोमल भस्म-२ तो० संखिया को (३) संखिया भस्म की सरल विधिएक मिट्टी क बर्तन में१० तोला अपामार्ग की भस्म बिछाकर उसपर एक तोले समूचे संखिया की बली जो २१ दिन तक मदार के दूध में तर करके रक्खी हो, रख दें। ऊपर से १० तोले और उक्त भस्म को डालकर हाथ से भली प्रकार दबा दें और बर्तन का मुंह बन्द करके ऊपर से तीन कपरौटी करके सुखाएँ। सूख जाने पर उस को १० सेर घरेल उपलों में रखकर पाग दें। शीतल होने पर धीरे से खोलकर निकाल लें। गुण-कफज रोगों के लिए अत्यन्त लाभप्रद है। (४) हिंगुल को भस्म-शिंगरफ़ रूमी २ तो० खरल में डालकर २० तो० पाक के दूध के साथ खरल करें । जब सम्पूर्ण दुग्ध समाप्त हो जाए तब टिकिया बनाकर छाया में शुष्क करें। फिर मिट्टी के शराव में. तो० चिरचिटा की राख बिछाकर उसपर हिंगल की टिकिया रखकर ऊपर से १० तो० उक्त राख डाल कर हाथ से दना दें। फिर ढक्कन देकर तीनवार कपढ़ मिट्टी करने के पश्चात् शुष्क करें और १० सेर घरेलू उपलों में रखकर आग दें। शीतल For Private and Personal Use Only
SR No.020060
Book TitleAayurvediya Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1934
Total Pages895
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size27 MB
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