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अनिलरिषः
अनिष्टकर
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(२) ताम्रभस्म, पारद भस्म, गन्धक, बच्छ
मात्रा-१ रत्ती। नाग प्रत्येक समान भाग ले चूर्ण कर चित्रक के
गुग-सेंधानमक के साथ या मिर्च, घृत, काथ से भावना दें और चौथाई पहर तक मन्द
त्रिकुटा, चित्रक के साथ खाने से वात रोग दर अग्नि (लघु पुट ) में पकाएँ ।
होता है। मात्रा-२ रत्ती।
(३) पारा, मैनशिल, हल्दी, शुद्ध जभालगुण-इसके सेवन से शोथ और पांडु दूर !
गोटे के बीज, त्रिफला, त्रिकुटा और चित्रक प्रत्येक होते हैं । रस० यो० सा० ।
समान भाग लें और गन्धक पारेसे दूना ले एकत्र अनिलरिप:anila-ripuh-सं० एरंड वृक्ष, . चूर्ण करें । फिर दन्ती, थूहर और भांगरा इनके
अरण्ड । ( Ricinus communit ) वै० । रम, दूध और क.थ से भावना दें। निघ. २ भा० सन्धि० ज्व० चि० रास्नादि। मात्रा--२ रनी। अनिलरूखः amila.sa.khah-सं० पु अग्नि, गुण-इसके प्रयोगसे रेचन होगा | जब रेचन श्राग। फायर | Fire)-ई.
हो चुके तब हलका पथ्य मरे के साथ कोई अनिलहरम् anila-haran-M० क्लो० कृष्णा- अंडी वस्तु न। फिर शरीर में शनि भाजाने पर
गुरु, काली अगर। वै० निघ। Pugle ! उसी प्रकार उपयुन रस को तब तक दें जब wood ( Aquilaria agailocha.)
तक कि रोग शान्त न हो जाए। यह 20 प्रकार अनिला anila-सं. स्रो० (1) नदी (River) ||
के वात व्याधियों को दूर करता है । रस.
यो सा । (२) खटिका, फूल खड़ी, सेतखड़ी। ( Cha. k)र० ना० ।
अनिलाशिन् anilashin-सं०
अनिलाशो anilashi-हिं. संज्ञा पु. अनिलाजोणंम् amilajirnam-सं० क्ली० धाता.
अनिलाषी: amilāshih-सं०ए जीणं । वा० सू० ८ श्र० । See - Vataji.
सर्प, साँप (A serpent )।-हिं० वि० Ina. अनिलाटिका anilariki-२० स्त्रो रक्त पुन
हवा पीकर रहने वाला । ( Air eatel) नया। See-Rakta-punamava अनिलास: anilāsalh-सं० प. कृष्णकान्ता अनिलान्तकः anil anta.kah-सं० पु.
(Clitorrets ternatea) देखो-अपरा
जिता। इंगुदो वृक्ष । इङ्गोट् , हिंगुश्रा । ( Balanitis roxbilughii )रा०नि०२०
अनिलेकायो mile.kayi-कना० हड़, हगोतकी । अनिलामयः amilamayah-सं० पु० (१) (Terminalia chebula) इं० मे०
वायुरोग, वात व्याधि । ( Nervous dise. मे०। ase) (२) अजीर्ण ।।
अनिलोचितः tamilochitah-सं० पु. नीलअनिलारिरस:anilari-rasah-सं० १०(१) माप, राजमाप, काली उड़द। ( Dolichos पारद । तो0, गंधक २ तो० की कजलीकर अरंड |
sinensis ) वै. निध० । और निर्ग राडी के रस से १-१ दिन खरल करें। पुनः ताम्र के सम्पुट में रख कपरौटी कर बालुका.
अनिष्ट anishta-हिं० वि० [सं] जो इष्ट न हो । यन्त्र में जंगली कंडे के चूर्ण की अग्नि दें। जब इच्छाके प्रतिकूल । अनभिलपित । अवांछित ।
शीतल हो तब निर्गुण्डी, अरण्ड, चित्रक इनके संज्ञा पु अहित । हानि । • रस की भावना दे रकने ।
| अनिष्टकर anishtakara-हिं० वि० [स]
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