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अनार
मनार
प्रयोगांरा-दाडिम (फल ) स्वक्, दाडिम्ब के फल का रस ।
औषध-निर्माण-( १ ) दाडिमाष्टक (च००)
(२) रुब्छे अनार-ताजे अनारदाना का । पानी लेकर भाग पर पकाएँ । पाद शेष रहने पर । उतार कर शीतल करके रक्खें।
(३) मधे अनार कन्दी-ताजे अनारदाना के पानी में समान भाग खाँड मिलाकर भाग पर शहद की चाशनी करें। मात्रा२ तो० से ३ तो० तक ।
() शवंत मनार-१ सेर मिश्री था। खाँड की चाशनी में . पाच रुम्बे अनार सादा या प्राधसेर अनार क्रन्दी मिला दें। मात्रासेतो० तक।
(१) शर्बत मनार तुर्श-जिस अनार का जिसका पतला और रंग सुर्ख हो, दाने उम्दा
और मोटे हों, उसका छिलका उतार कर दानों से पानी निघोर लें और छान कर १ सेर पानी में सवापाव मिश्री मिलाकर शर्बत बनाएँ । मावश्य- . कतानुसार पानी में मिलाकर पिलाएँ । गुणतृषाशामक होने के सिवा मतली बमन और पिसी.. स्वराय के लिए प्रत्यन्त लाभप्रद है।
(६) शर्यत अनार शीरी-प्रत्युत्तम मीले अनार लेकर पानी निचोड़ लें। पावभर उक रस में प्राधसेर श्वेत शर्करा मिलाकर मुलायम आँच पर पकाएँ और शर्बत की चाशनी लें। मात्रा-२ तो० से ५ तो0 तक।
सेवन विधि-अवश्यकतानुसार शीतल जल में मिलाकर सेवन कराएँ ।
गुण-तृषाशामक एवं हृय । (.) शीतकषाय (ना.)-५ तो० शुष्क अनारदाना को प्राध सेर पानी में तीन घंटा तक भिगाएँ । बाद को मल छान लें और काम में लाएँ । मात्रा-२ तो० से ५ तो० तक।
फलत्व, मात्रा--10 से ३० मेन (५ से १५ रसी)।
अनार के गुण-धर्म तथा प्रयोग
आयुर्वेदीयमतानुसार अम्ल, कषेला, मधुर, वातनाशक, प्राही, दीपन, स्निग्ध, उष्ण तथा हृय है और कफ एवं पित्त का विरोधी नहीं है। खट्टामनार mt तथा पित्त एवं वात प्रकोपक है। मधुर अनार पित्त नाशक होने से उत्सम है। (ब० फ० ५० स० २७५०)
अनार कषेला एवं फीका ( अनुरस ), अति पित्त कारक महीं है सभा, दीपन, संचिकारक, हच एवं मलविवम्धकारक है। या अम्ल तथा मधुर दो प्रकारका होता है। इनमें से मधुर त्रिदोष नाशक और अम्ल वात एवं कफ माशक है । सुभुत स०४६०।
अनार स्निग्ध, उध्याय और का पित विरोधी है। धन्वन्तरीय निघण्टु ।।
मनार मधुर अम्स कोला, पातमाशक, कफनाशक, पित्तनाशक, प्राही, दापन, मधु, उम्म शीतल, श्रमनाशक तथा अधिकारक है और कास का नाश करने वाला है। अनार अम्बा, मधुर भेद से दो प्रकार का है जिनमें से प्रथम बातकफ, नाशक और द्वितीय तापशामक, बघु एवं पथ्य है। अन्य ग्रंथों में इसको अम्म, कला, मधुर, घातनाशक, प्राही और दीपन लिखा है। रा०नि० व."
अनार का फल तीन प्रकार का होता है। मीठा, मीठाखट्टा और केवड महा। इसमें मीठा अनार त्रिदोषहर, प्यास, वार, ज्वर, हृदयरोग, करोग, मुख की गंध को नष्ट करता तृप्त करता, शुक्रकर तथा इलका, काय रस, ग्राही, स्निग्ध, स्मरणशक्रियरक और खकारक है। खट्टा और मीठा अनार अम्भिदौतिकर, रोचक, किंचिस्पित्तजनक, सयु और केवल सहा अनार पित्तकारी और बात का भाशक है। भा०।
य, अम्ल, श्वास, रूचि तथा तृष्णा का नाश करने वाला है और संशोधक एवं पित्त कफ का बोध करानेवाला है। राजा।
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