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अनार
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मनार
एशिया (अरब ईरान, अफगानिस्तान, बलूचिस्तान, भारतवर्ष तथा जापान ) । पश्चिम हिमा- ! लय और सुलेमान की पहाड़ियों पर यह वृक्ष पाप से प्राप उगता है। यह सम्पूर्ण भारतवर्ष । में लगाया जाता है। काबुल कंधार के अनार | प्रसिद्ध हैं। भारतीय अनार वैसे नहीं होते।
वानस्पतिक वर्णन-यह पेड़ १५.२० फुट ऊँचा और कुछ छतनार होता है । इसके तने की गोलाई ३-४ फुट होती है। माघ या फागुन में इसके नए पत्ते लगते हैं । इसके पत्ते टहनियों के प्रामने सामने लये रहते हैं। यह कुछ लम्बे नोकदार और सिरे पर गोलाई लिए होते हैं। इनके फूल की पंखड़ियाँ रक्रवर्ण की होती है !
और फूल अधिक तर एकं एक स्थान पर लगते | है। इसके फल की मध्य रेखा २ से ३॥ इच लम्बी होती है। इसके फूल हर मौसम में लगते लेकिन चैत, वैशाख में बहुत लगते हैं। अपाद से भादों तक फल पकते हैं। . रासायनिक संगठन वृष एवं फलस्वक् में २२ से २५ प्रतिशत कयायीन (Taunin) होता है। वृक्ष मुल त्वक में २० से २५ प्रतिशत प्युनिको टैनिक एसिड (दादिम-कनायिनाम्ज) मैनिट (Matthit), शर्करा, निर्यास, पेक्टीन, भस्म १५ प्रतिशत, एक प्रभावात्मक पैलीटिएरीन या प्युनीसीम ( अनारीन) नामक तरल धारीय सख होता है और तैलीय द्रव प्राइसो पैलीदिएरीन या प्राइसोप्युनीसीन (अनारीनवत् ) तथा मीथल पैनोटिएरीन व स्युडोपेलीटिएरीन (मिथ्या अनारीन) नामक दो प्रभाव शून्य क्षारीय सव होते हैं । माडिम कपायाम्ल ( Punicotannic acid) को जब जलमिश्रित गंधकाम्ल (सल्फ्युरिक एसिड) में उबाला जाता है तम वह इलैजिक एसिड ( Ellagic acid ) और शर्करा में विलेय होता है।
नोट-जड़ की छाल में यह सरव अपेवाकृत अधिकतर होते हैं। विशेषतः स तथा श्वेतपुष्प वाले अनार में।
प्रयोगांश-मूल त्वक, वृक्षस्वक, अपकफल,
पचफल, बीज स्वरस, फलस्वक, पुष्प, कलिकाएँ और पत्र।
इतिहास-चरक के छहिनिग्रहण एवं श्रमहर वर्ग में दाडिमका पाठ पाया है और वहां इसे वमन नाशक एवं हृद्य लिखा है। सश्रत में भी अन र का वर्णन पाया है। तो भी इसकी जड़ की छाल के उपयोग का वर्णन किसी भी प्राचीन भायुर्वेदीय निघण्टु ग्रंथ में नहीं दिखाई देता । भावरकाश में इसकी जड़ को कृमिहर लिखा है। .. .. . . . बकरात ( Hippocrates ) ने पोमा. साइड नाम से 'अनार का वर्णन किया है। झीसकरोदस ( Dioscorides ; ने पराइ. पोप्रास के नाम से अनार की जड़ की छाल का " वर्णन किया है। इसको वे कृमियों को मारने एवं उनके निकालने के लिए सर्वोत्तम ख्याल करते थे । प्रस्तु; आज भी इस औषध को उसी गुण के लिए व्यवहार में लाते हैं। .
इसलामा हकीम सङ्कोचक होने के कारण इसके पुष्प एवं फल स्वक् को विभिन प्रकार से उपयोग में लाने के अतिरिक्र वे इसके मूल स्वक् को जो इसका सर्वाधिक धारक भाग है, कद्दूदाना के लिए अमोघ प्रौषध होने की शिफारिस करते हैं।
अनार का बीज प्रामाशय बलप्रद और गूदा हृदय एवं प्रामाशय अलप्रद ख्याल किया जाता है। दोसफरीदूस ( Dioscorides ) एवं प्राइनी ( Piny ) के ग्रंथों में भी इसी प्रकार के वर्णन मिलते हैं 1 अत: ऐसा प्रतीत होता है कि अरब लोगों ने अनार के औषधीय गुणाधर्म का ज्ञान अपने पूर्वजों से प्राप्त किए।
अनार की जड़ की छाल एवं फल का छिलका ये दोनों फार्माकोपिया ऑफ इंडिया में प्रॉफिशल
भनार (फल) दाहिम फलम्, दादिमः सं० । अनार, दादम, दामु-हि० । प्युनिकाप्रेमेटम् Punica Granatum, Line. (Fruit of Pomegr
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