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अतिविषादिचूर्ण
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प्रतिसादः संग्रहणी, ज्वर, अरुचि और मन्दाग्नि का नाश ! म को अधिकता । अधिक व्यायाम पथ्य नहीं
होता है तथा यह धातुवर्द्धक है । वृ. नि. र. है। इससे कास, सर, छर्दि, क्रान्ति (थकान ), पति वेषादिचूर्णम् ti-visha li-churnum-सं. प्यास, क्षय, प्रतमक श्वास तथा रऋपित्त प्रभृति
क्लो० प्रतीस,त्रिकुटा, सैंधव, यवहार और हींगका रोग हो जाते हैं। भा० पू० १ मा० । वा. क्वाथ या चुणं गरम पानी के साथ लेने से प्राम: स. १० १। युक्र संग्रहणी नष्ट होती है। अथवा पीपल, अतिशकुलो uti.shashkuli-सं. श्री. सोड, पा, शारियों, दोनों कटेली, चित्रक, इन्द्र- तिलकृत रोटिका । यव, पॉचो नमक और यवहार का चूर्ण बनाकर गा-यह रूझहै और श्लेग्म, पित्त तथा रत. दही, गरम पानी और सुरा अादि के साथ सेवन । की नाराकाने वाली भारी, विष्टम्भ( मलावरोध) करने से अग्नि प्राप्त होती और कोगत
करने वालो और चर के लिए हितकारी नहीं है। वायु मिट जाती है । च०सं० चि. अ० १५ । भा० पू० कृतानव०। प्रतिवीज ativijali-सं० पु. बवूर (बबूल) अतिशारिवा ntishāriva-सं० स्त्री० अनन्त. qel ( Acacia Arabical, 11i!!!.)
मूल-हि, यं० । अनन्ना-सं० । (Hmilबै. निघ ।
esmus indicus, R. B)170 मा० । प्रतिवृष्टिःti-rishti-हिं. संज्ञा स्त्री० [सं० देखा-शारिवा।
पानी का बहुत बरसना जिससे खेती को हानि अतिशीत ati-shita-सं० (हिं०) श्री. अधिक पहुँचे। अत्यन्त वर्ण ।
डा, अत्यन्त जाड़ा। अतिवृहत्फल: tirihint-phalah-सं० पु. अतिशुपर्णा atishuparni-सं. स्त्री. वन
पनस । कटहल (Artocarpus integrifo मूंग, मुदगपर्णी । (Phasoolu; triloblia, I.inn) भा० पू०१ भा० ।
__us, Ait.) अतिवृहण ati-vrinhana-सं० त्रि. अत्यंत दूध, अतिशूक: ati-shikah सं० पु. यव-सं० ।
घी तथा सांसादि भक्षण द्वारा प्राप्त स्थूलता। जी-हिं० 1 ( Barley )। प. मु०। अतिहित ati-Tithiti-हिं० वि० [सं०] / अतिशकजः nti-shuka.jah-सं० पु. गेहूँ हद । पुष्ट । मज़बून ।
__-f. गोधूम-सं० । ( Wheat. ). अतियथा ti-syathi-सं० स्त्री० अतिवेदना, अतितक्षारम् ati-shrita-kshiram-सं० अतिपीड़ा, अतिशयित यन्त्रणा।
क्ली. अत्यन्त प्रौटाया हुश्रा दूध । यह अतिव्याप्ति ati-rryapti-हि. स्त्री० [सं०] | यहुत भारी होता है वा० सू० ५ अ० ।
न्याय में एक लक्षण दोष । किमी लक्षण वा अतिशेषः atishoshah-सं. प. क्षयरोग कथन के अन्तर्गत लक्ष्य के अतिरिक्र अन्य !
तिरिक्र अन्य ! (Pthisis.)। देखा क्षयः । यस्तु के श्राजाने का दोष । जहाँ लक्षण वा लिंग | अतिसय्या ati-sayyi-सं० स्रो० अप्टिमधु लक्ष्य चालिंगी के सिवाय अन्य पदार्थों पर लता, मुलेठो की बरुली ( Glycyrrhiza भी घट सके वहाँ अतिव्याप्ति दोष होता है।
___glabra) वै० श.। अतिव्यात्ताननम् ati-vy:attanaham-सं० ! अतिसर्जनमati.sarjanam-सं० की. वेध, की मुँह फाड़ कर, मुँह खोलकर । सु. शा० . वेधना, छेदन । मे० नपञ्चकं । श्र० श्लोक ८ ।
अतिसान्द्रः ati-sindrah-सं० पु. प्रतिव्यायामः ati vāyāmah-सं० पु.
लोयिया, बोड़ा-हिं । राजमाष-सं० । (A व्यायामाधिक्य, अधिक व्यायाम करना अर्थात् ।
kind of buan ( Dclichos Sineकुश्ती व कपरत करना, किसी प्रकार के शारीरिक nsis. '.
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