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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org घडखरबूजा इसको भोजन करने के एक घंटा पश्चात् सेवन करें । इसको भोजन के साथ सेवन करने से पेपीन की उससे न्यूनतर मात्रा भी वहीं प्रभाव प्रगट करेगी ! २२२ डॉक्टर हशियन (Dr. Hatchison) जीवस्था में अबूजा के शुल्क रस को अधिक उत्तम ख्याल करते हैं। जैसे अण्डखरबूजा का शुल्क रस १२ ग्रेन, प पीकाक ( इपीकेक्वाना चूर्ण ) १२ ग्रेन, पल्व रहीआई ( रेवन्दचीनी का चूर्ण ) ३ अन, ग्लीसरीन (मधुरीन ) श्रावश्यकतानुसार इसे चाहे चूर्ण रूप में रखें अथवा इसकी १२ वट का प्रस्तुत करें। इसको वे भोजनोपरांत सेवन करने का आदेश करते हैं। शुष्क पपीता स्वरस को पसन्द करने का कारण यह है कि उसका श्रपयोगिक प्रभाव किंचित् कोष्टमृदुकर हूँ और यह श्रधिकतर संतोषप्रद है । जैसा कि प्रागुक्त मात्रा (प्रत्येक बटी में १ ग्रेन) में सेवन करने से यह अत्यन्त भेदक प्रभाव करता है और किसी भी भाँति रोगी । को विरेक नहीं कराता । उक्त डॉक्टर महोदय के वर्णनानुसार पपीता वृच से चतुरतापूर्वक निकाल कर शुल्क किया रस या पपीतादुग्ध पेपीन के सहित अपने संयोगी प्रवयवों की उपस्थिति में अनेक दशाओं में स्वयं प्रभावात्मतक सत्व पेपीन की अपेक्षा श्रेष्ठतर प्रमाणित होता हैं। भोजनोपरान्त होने वाली बेचैनी को वास्तविक उदरशूल में परिणत होजाने पर श्रापने पपीता को अफीम | के साथ निम्न प्रकार यांजित किया :--- पपीता स्वरस १२ ग्रेन, ग्रहिफेन चूर्ण ३ ग्रेन ग्लीसरीन श्रावश्यकतानुसार। इसको चूर्ण रूप में रक्स् अथवा इसकी बटिकाएँ प्रस्तुत करें। प्रति भोजनोपरान्त १ वटी सेवन करें | (३) कण्ठरोहिणी तथा स्वरोकास ( Diphtheria and Croup ) - उक्र रोग के निवारणार्थ पेपीनका स्थानिक प्रयोग लाभदायक होता है । इस हेतु उसका तीक्ष्ण घोल तैयार करना चाहिए। इसकी उम्र स्थल पर लगाना तथा नासिका एवं मुख में १-२ मिनट Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अण्डखरबूज़ा के अन्तर से पकाना चाहिए। इसके उपयोग से डिप्थीरियाजन्य मिथ्याकला बुलजाती है। उम्र अवस्थाओं में इससे पहिले ही दिन लाभ अनुभव होता है, जिससे स्वर लुप्तप्राय होजाता तथा नाड़ी स्वास्थ्यावस्थापर आजाती है। सदा इसका ताजा घोल प्रस्तुत करना चाहिए। श्रथवा पेपोयोटीन १ भाग, जल ४ भाग तथा ग्लीसरीन ४ भाग, श्रावश्यकतानुसार इसे घंटा दो दो घंटा पश्चात् लगाएँ । ( ४ ) वृकशूल (Nepthritic colic)वृक्काश्मरी में १ से ३ ग्रेन पेपीन को वटी रूप में सेवन करने से लाभ प्रतीत होता है ! डॉ० ई० एच० फेन्त्रिक | (५) कृमिघ्न (Anthelmintic) - केचु श्रा और कद्दूदाने के लिए भी इसका ( पंपीन ) श्रीपधीय उपयोग किया गया इसके पाचक प्रभाव के कारण इससे कभी कभी लाभ प्रदर्शित हुआ । हिट० मे० मे० । खरजा के दूधिया रस को शहद के साथ मिलाकर देने और उसके पश्चात् एक मात्रा गुरण्डतैलका व्यवहार करानेसे केचुश्रा में अत्यन्त लाभ होता है | एक पोडशवर्षीया कम्या जो कहदान (Penia Solium) के कारण अत्यंत पीड़ित थी एवं उसके उदर में तीव्र शूल हो रहा था, उसको डॉक्टर हरिसन (Hutchison) ने शुक पपीता स्वरस ३ प्रोन में शूलशमनार्थं ४ ग्रेन वर्स पाउडर सम्मिलित कर सेवन कराया । इससे कद्दूढाना टुकड़ा टुकड़ा होकर मल के साथ निकल थाया तथा रोगिणी के सम्पूर्ण विकार जाने रहे एवम् उसको अत्यन्त लाभ प्रतीत हुधा ! ६ ) स्तन्यजनक तथा गर्भशातकआंतरिक रूप से उपयोग करने अथवा स्थानिक रूप से लगाने से यह सशक्र स्तम्यजनक प्रभाव करता है । हिट० मे० मे० । पी० बी० एम० । गर्भवती स्त्री को उपयोग कराने से इसका गर्भशातक प्रभाव होता है । जिह्वा तथा कंठरोग - श्वीमर Schwimmer महोदय ने जिह्वा की कर्कशता ( जिह्वा For Private and Personal Use Only
SR No.020060
Book TitleAayurvediya Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1934
Total Pages895
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size27 MB
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