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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अंडसा २१. अडूसा ही में यदि इसे फाड़े पर लेप करें तो उसे बिठा देता है और कोई कष्ट भी नहीं होता। अडूसे के पत्ते को कूट कर गोला सा बनालें और उस गोले पर एरण्ड के हरे पत्ते लपेट कर ऊपर से मास ( उड़द ) के आटे का लेपन कर भूबा में दवाई जब पाटा पक जाय तब उसे हटाकर अरण्ड पत्र को पृथक करके अड्सा का रस निकाल कर रखलें । अब उस निकाले हुए रस में से प्राधसेर बह रस, १ पाव खाड़ देशी, ४ . तोला पीपल का चूर्ण और चार तोला गोघृत मिलाकर पकाएँ । जब चाशनी गाढ़ी हो जाए तब उतार कर उसमें एक पाव शुद्ध शहद मिलाकर माजून बनाकर रख लें। मात्रा-४-४ माशा शाम व सुबह । इसे . क्रमश: बढ़ाते जाएँ। गुण--राजयामा, खांसी, दमा, प्रतिश्याय, अजीर्ण और वक्षःस्थल स्थ वेदना को अत्यन्त लाभाद है। भस्मोकरण यदि शुद्ध तास पत्र को अड़से के पत्ते के रस में सौ बार बुझाएँ । पश्चात् राई की गन्दलों की लुगदी में एक मन उपलों की अग्नि दें। इसी प्रकार तीन बार करें, भस्म तैयार होगी। . गुण- इसमें से १ रत्ती उचित रूप में उपयोग करने से सः पूर्ण वातव्याधि, कफ, खाँसी, दमा, निर्बलता एवम् बुढ़ापा ग्रभूति दूर होता । "हिन्दू मेटीरिया मेडिका' के लेखक यू. सी दत्त महोदय के कथनानुसार यह कहावत प्रसिद्ध है कि वह व्यकि जो राजयमा से पीड़ित हो उसे उस समय तक उदास न होना चाहिए जब तक वासक वृक्ष यहाँ स्थित है। यह पुरातन काम, दमा और अन्य फुफ्फुसीय एवं कफ सम्बन्धी रोगों में अत्यन्त लाभदायक है। (डॉ० जैक्सन और दत्त) ___इसका पुष्प राजयचमा नाश करने वाला, पित्तघ्न और रुधिर की उरणाता का शामक है। यदि पुष्प को रात्रि में जल में भिगो दें और सवेरे मल छानकर पान करें तो मूय की जलन एवम् अरुणता दूर हो। - इसके शुष्क किए हुए पपी को कूट छान कर उससे द्विगुण बङ्गभस्म मिलाकर शीरा काह, .खुर्की और खीरा के साथ व्यवहार में लाने से शुक्रप्रमेह नष्ट होता है। शुष्क पुष्प चूर्ण के साथ इससे चौथाई जौहर नौसादर योजित करके २ रत्ती बताशा में रखकर खिलाने से तर खाँसी दूर होती है। इसके एक पात्र पके फूल का एक बोतल शर्बत तय्यार करें। चार मा. यह शर्बत ६ मा० रूह केवड़ा और उचित मात्रा में कुएँ का जल मिला कर सवेरे पिलाने से हृदय की धड़कन, श्वास फूलना, पथराहट और पुरातन गर्मी दूर होती है। अडसेका फूल १ सेर,इससे द्विगुण शर्करा डालकर गुलन्द तैयार करें। यह कास, श्वास और यक्ष्मा में लाभप्रद है। अडसा पुप्प द्वारा भस्म प्रस्तुत करना अड़से के फूल को कूटकर रस निचोड़ें और उस रस में गोदन्ती हड़ताल को खरल कर नियमानुसार अग्नि दें। इसी प्रकार सात बार करें तो गोदनी भरत प्रस्तुत होगी। गुण-यह जीर्ण ज्वर के लिए अत्यन्त लाभदायी सिन्दमोगी। खून थूकने में ५ मा०कहरुवा में एक रत्ती यह भस्म रखकर शर्बत प्रजबार के साथ खिलाने से कुछ ही खुराकों में लाभ है अडसे के पुप्प श्रडूमे के पुष्प, पत्र और मूल, परन्तु | विशेषकर पुष्प में श्राप शामक गुण होने का निश्चय किया जाता है और मा की कई अवस्थाओं तथा विषमज्वरों की तीव्रता के पुनरावर्तन में योजित किए जाते हैं। ये किञ्चित् : तिक एवं अर्ध सुगन्धि युक्र होते तथा शीत कपाय एवं अवलेह रूप से उपयोग में पाते हैं । अवलेह की मात्रा लगभग चाय के चम्मच भर दिन में दो बार प्रयोग में पाती है। (डॉ० एन्सली )। For Private and Personal Use Only
SR No.020060
Book TitleAayurvediya Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1934
Total Pages895
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size27 MB
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