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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org श्रञ्जनविधिः i शुद्ध करने के लिए और दृष्टि को स्निग्ध करने के लिए उपयोगी हैं। भा० प्र० खं० १ । अंजन तीरण ( लेखन ) हो तो उसकी मटर ( एक थंडी के बीज की बराबर ) के समान गोली बनानी चाहिए और मध्यम ( दृष्टि का बल बढ़ाने के लिए ) श्रर्थात् तीच्ण न हो, और कोमल भी न हो तो उसकी १॥ ( मटर के बराबर गोली बनानी चाहिए और कोमल ( दृष्टि को स्निग्ध करने वाला ) हो तो उसकी २ मटर के बराबर गोली बनानी चाहिए। आँख में यदि रसांजन अर्थात् रसरूप अंजन डालना हो तो तीन वायविडंग के बराबर डालना उत्तम है ( एक वायविडंग के बराबर भा० प्र० १० १ ), दो वायविडंग के बराबर डालना मध्यम है और एक वायविडंग के बराबर डालना कनिष्ट है ! चूर्णरूप अंजन जो स्नेहन हो तो उसकी चार सलाई आँख में लगानी चाहिए, रोपण हो तो उसकी तीन सलाई और जो लेखन हो तो उसकी दो सलाई नेत्रों में लगानी चाहिए। श्राँजने की मलाई दोनों श्रोरके मुखों से सकुची हुई, चिकनी, श्राट अंगुल लम्बी और उनके दोनों मुख मटर के समान गोल और वह पत्थर अथवा धातु की होनी चाहिए । स्नेहनांजन श्रजिना हो तो सोने अथवा चाँदी की, लेखन अंजन श्रजना हो तो ताँबे, लोहे, अथवा पत्थर की सलाई होनी चाहिए श्रौर रोपण अंजन आँजना हो तो कोमल होने के कारण उसके श्रीजने के लिए गुली ही ठीक है 1 काले भाग के नीचे आँख के कोये तक श्रञ्जन | श्रजे । हेमन्त ऋतु में और शिशिर ऋतु में मध्याह्न के समय श्रञ्जन श्रौंजना चाहिए। ग्रीष्म और शरद ऋतु में पूर्वाह्न के समय अथवा अपराह्न के समय श्रञ्जन sजना चाहिए । वर्षा ऋतु में बादलों के न होने पर तथा जन बहुत गरमी न हो उस समय अञ्जन श्राँजना | चाहिए और वसन्त ऋतु में सदैव जन करना चाहिए, अथवा प्रातः और सन्ध्या दोनों समय अञ्जन श्रजना उचित है, किन्तु निरन्तर न श्रजे । ter श्रञ्जनादिगणः थका हुआ, बहुत रोया हुआ, भयभीत, मद्यपान किया हुआ, नवीन ज्वर वाला, जीर्ण रोगी और जिसके मल मूत्रादि के वेग का अवरोध हो गया हो उनको अञ्जन नहीं लगाना चाहिए। ( भा० म० २ ) । जिनको प्रअन श्रीजने का निषेध किया है। उनके श्रञ्जन श्रजे तो नेत्रों में लाली होती है, नेत्र सूजे से होते हैं, तिमिर, शूल, तथा दोषों का कोप होता है, और निद्रा का नाश होता है । ( भा० प्र० ख० १ श्लो० ५८ ) अञ्जन शलाका Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir anjana-shalásá—• स्त्री० ( A stick or pencil for the application of collyrium सलाई, सुरमा लगाने की सलाई । अञ्जना avjaná-सं० [स्त्री० मादा हाथी, हथिनी । ( A female-elephant ) अञ्जनादिः anjanadi-सं० स्त्री० मैनशिल श्रीर पारावत ( कबूतर ) की बीट का अञ्जन करें तो अपस्मार विशेषकर उन्माद का नाश हो । मुलहकी, हींग, वच, तगर, सिरस बीज, कूट, लहसुन, इन्हें बकरों के मूत्र में पीस नेत्राम्न करने से तथा नस्य देने से अपस्मार और उन्माद दूर होता है । पुष्य नक्षत्र में कु का पित्त लेकर अन्जन करें तो अपस्मार दूर हो या उसी पिछ मैं घृत डालकर धूप दें तो अपस्मार ( मृगी ) दूर हो ! चक्र० १० अपस्मार त्रि० । निर्मली, शंख, तेन्दू, रुपा, इन्हें स्त्री के दूध मैं काँसे के पात्र में घिस श्रञ्जन करें तो व्रणसहित नेत्र की फूली दूर हो। रन, शंख, दन्त ( हाथी दाँत ), धातु (रूपा), त्रिफला, छोटी इलायची, करज के बीज, लहसुन, इनका प्रअन फूली के व्रण को दूर करता है तथा श्रवणशुक्र, गम्भीर धरण शुक्र, त्वग्गत शुक्र इन्हें भी दूर करता है । ( बं० से० नेत्र रो० शि० ।) श्रञ्जनादिगण : anjanadi ganah - सं० पु० सौवीराजन, रसाञ्जन, नागकेशरपुष्प, प्रियंगु, नीलोत्पल, उशीरा (खस), नलिन, मधुक और पुलाग । सु० सू० ३८ श्र० । स्रोताञ्जन, सौवीराज्ञ्जन, प्रियंगु, जटामांसी, पद्म, उत्पल, For Private and Personal Use Only 1
SR No.020060
Book TitleAayurvediya Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1934
Total Pages895
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size27 MB
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