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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अंशवाद (य)न खुरासानो। अंजवाइ (य)न खुरासानी में और अत्यन्त खफ्रीक कोरोफार्म और ईथर में | दुख जाता है। प्रभाव-व्याप्तावसारक (General se. dative) और निर्वस्व निद्राजनक (Weak hypnotic)। सामुद्र रोगों (Sea sick- ! ness ) में लाभदायी है। मात्रा--१ से २- ग्रेन (३ से ६ मि. २०० १०० 'प्रा० ) मुख से या स्थगस्थ प्रातःक्षेप द्वारा। नॉट मॉफिशल योग (Not official preparations). (१)हायोसायमोनो हाइड्रोग्रामाइडम् । (Hyoseyaminie hydrobroiniduni) इसके छोटे छोटे श्वेत दामेवार रवे होते हैं, जो १ भाग १ भाग जल में लय होजाते हैं। मात्रा से .. ग्रेन। (२) इविशो हायोसायमीनो हाइपोडर्मिका (Injectio hyoscyamilie hvpodermicai-हायोसायमीन सल्फेट , ग्रेन (साधी रसी), परिस्रत जल २ हाम । मात्रा-1 से ३ बुद। (३) हाइपोडर्मिक लेमेल्ज़ (Hypo(dermic laimels )-प्रत्येक लेमीली में १-से ... मेन उन औषध होती है। १००" 100 (४) आफ्थैत्मिक डिस्कस (Ophthalmic dises )-प्रत्येक डिस्क में ग्रेन दया होती है। (१) हायोसायमीनो ग्रेन्यूज़ ( Hyoscyamin granules )-17 Å ग्रेन। यह सी-सिक्नेस (सामुद्र रोग ) में लाभदायक है। ___ हायोसायमीनो सस्फास के गुणधर्म व प्रयोग प्रभाष-हायोसायमीन या हायोसाहमस का द्वितीय क्षारीय सत्य नेत्रकनीनिका प्रसारक है, और थोड़ी मात्रा में यह नाड़ी की गति को मंद करता है तथा धामनिक तनाव की वृद्धि करता एवं शारीरोग्मा की कमी को रोकता है और भूल चूक ( Hallucination ) व विभ्रम पैदा करता है। अधिक मात्रा में यह तरक्षण नाड़ी स्पन्दन को कम कर देता है तथा प्राकटय पातप्रस्तता या चालन की अशक्रता तथा निद्रा उत्पन्न करता है। उपयोग-हायोसीन की अपेक्षा हायोसायमीन प्रभाव में धत्तूरीन (Atropine ) से अधिक समानता रखता है। अधिकांश रोगियों में यह बिना पूर्व विभ्रम के निद्रा उत्पम करता है। हायोसायमीन ( Hyoscyamine ) ऐद्रोपीन के समान हो, किन्तु उससे अधिक नेत्रकनीनिका प्रसारक है। इसमें एट्रोपीन से विभ्रमकारी प्रभाव कम तथा निताजनक प्रभाव अधिक है। इसमें अधिक विश्वसनीय तथा शीघ्र मदकारी (नारकोटिक) गुण है। और यह सत्व अफीम ( मॉर्फीया ) तथा फोरल हाइट से पूर्ण सथा कम बर्जमीय है। यह बातमंडलायसादक है। डॉक्टर रिङ्गर ( Ringer ) के कथनानुसार जिन्होंने सम्भवतः अशुद्ध लवण का नवीमोन्माद में उपयोग किया इसके प्रभाव का एट्रोपीनसे तुलना करने पर कोई भेद नहीं ज्ञात हुश्रा । यह बलवान नेत्रकनीनिकाप्रसारक है तथा नेत्र रोग में इसका उपयोग होता है। परंतु ऐट्रेोपीन की अपेक्षा यह विशेष लाभदायी नहीं है। डॉक्टर.ए० श्रार० कुश्नो (Cushny) के वर्णनानुसार विशुन्छ हायोसायमीन शुद्ध ऐहो. पीन की अपेक्षा नेत्रकनीनिका प्रसारण तथा लालास्राव प्रतिबंधन में द्विगुण शक्रिशाली है। किरती पर सवार होने से प्रथम यदि इसे कुछ ५०० दिवस तक - ग्रेन की मात्रा में प्रयोग करें तथा १०० इसे कुछ समय तक प्रति घंटा २-२ घंटा पर दोहराते रहें तो यह सामुद रोग (Sea sickmess) को रोकने के लिए सर्वोत्कृष्ट प्रौषध है। यह कनीनिकाप्रसारक रूप से भी ज्यवहार में आता है। कालिज (श्रद्धांगवात या पक्षाघात) For Private and Personal Use Only
SR No.020060
Book TitleAayurvediya Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1934
Total Pages895
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size27 MB
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