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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [ ] फिर प्रत्येक औषध का वानस्पतिक व रासायनिक वण न दिया गया है जो हिंदी में एक विल्कुल नवीन विषय है । पुनः रासायनिक -संगठन (विश्लेषण ), प्रयोगांश, परीक्षा, मिश्रण,विलेयता, संयोग-विरुद्ध, शक्ति, व, प्रकृति,प्रतिनिधि, हानिकारक और दर्पघ्न इत्यादि का प्रावश्यकतानुसार यथास्थान वर्णन किया गया है। पुनः विषपत्रिप एवम् स्खनिज की श्रायुर्वेदीय तथा यूनानी मतानुसार शुद्धि एवम् खनिज व धातुओं के भस्मीकरण के परीक्षित एवम् शास्त्रीय नियमों का वर्णन किया गया है। फिर औषध-निर्माण तथा मात्रा दी गई है। औषध-निर्माण में प्रथम अमिनित फिर मिश्रित आयुर्वेदीय, युनानी औषध तथा डॉक्टरी के ऑफिशल योग (जिसमें प्रत्येक औषध को निर्माण-विधि है) दिए हैं। तत्पश्चात् नॉट प्राक्रिशल योग जिसमें उक्र औषध ने बनाई हुई यूरोप अमरीका को लाभप्रद प्रायः पेटेण्ट औषध का उनके संक्षिप्त इतिहास लक्षण एवं गुणधर्म तथा प्रयोग का वर्णन है, दिया गया है। तदनन्तर गुणधर्म तथा प्रयोग शीर्षक के अन्तर्गत आयुर्वेदीय मत से धन्वन्तरीय निवण्टु से लेकर पात्र तक के सभी निघण्टुनो' के गुणधर्म इस प्रकार एकत्रित कर दिर गए हैं। जिसमें विषय प्रावश्यकता से अधिक न होने पाए और साथ ही कोई बात छूटे भी नहीं । फिर चरक से लेकर आज पर्यन्त के आयुर्वेदीय चिकित्सा शास्त्रों में जहाँ जहाँ उक्र औषध का प्रयोग हुआ है, उसको यथा क्रम सप्रमाण एका संकलित कर दिया गया है, पुनः उन पर अपना नव्य लिखकर बाद में यूनानी मत से प्रायः उनके सभी प्रमाणिक ग्रंथों से उक्त श्रौषध विषयक गुणधर्म तथा प्रयोग को सरल हिंदी में अनूदित कर प्रमाण सहित संगृहीत कर दिया गया है। किसी किसी औषध के पञ्चांग के प्रयोग का विशद विवेचन किया गया है। और यदि उसके किसी अंग से किसी धातूपधातु वा रत्नोपरत्न की भस्म प्रस्तुत होती है तो उसके भस्मीकरण की विधि, मात्रा, श्रनुपान, एवं गुणप्र-योग प्रादि भी दिए गए हैं। फिर डॉक्टरी मतानुसार उक्र औषध का विस्तृत श्रावयविक वाह्यान्तर प्रभाव तथा प्रयोग अर्थात् उक औषध का कितनी मात्रा में किस किस शरीरावयव पर क्या क्या प्रभाव होता है, विस्तार के साथ वर्णन किया गया है । यदि उसका अन्तःक्षेप होता है तो उसकी मात्रा एवं उपयोग-विधि का भी उल्लेख किया गया है । औषध के गुणधर्म वर्णन के पश्चात् योग-निर्माण-विधि विषयक एवं किसी किसी और के सम्बन्ध में श्रावश्यक अादेश दिए गए हैं। सैन्द्रियक तथा निरैन्द्रियक विपापविप द्वारा विषाक्रता के लक्षण एवं तत्शामक उपायो' तथा श्रगद का विशद वर्णन किया गया है। अन्त में उक्त प्रौपध के दो चार परीक्षित योग लिख दिए गए हैं। इस प्रकार इसमें आज कल की ज्ञान अज्ञात एवम् स्वानुसंधानित देशी विदेशी लगभग २५०० वनस्पति प्रायः सभी खनिज एवम् रासायनिक तथा चिकित्सा कार्य में आने वाली प्रार: सभी प्राणिवर्ग की औपधे। का विशद वर्णन और लगभग एक सहन औषधियों का संक्षिप्त वर्णन है। इस विचार से यह केवल शब्द- कोप ही नहीं, अपितु एक प्रामाणिक एवं अभूतपूर्व निघण्टु भी है। वर्णन इस प्रकार का है कि इससे श्रायुर्वेद विद्यार्थी. पंडित, हकीम तथा डॉक्टर एवम् सर्व साधारण जनता भली प्रकार लाभान्वित हो सकती है। संप में इसकी रखते हुए फिर अन्य किसी भी निघण्टु की प्रात्रश्यकता ही नहीं रहती। वनस्पतियों के स्वयं लिए हुए छाया चित्र भी तय्यार किए जा रहे है और इसी क्रम से इस ग्रंथ के अंतिम खंड में प्रकाशित किए जाएँगे । जितनी पोषधियों का वर्णन इस ग्रंथ में पाया है, प्रायः उन सभी के छाया चित्र उन खंड में होंगे। इसमें प्राय : औषधि के नामकरण हेतु, उनके पर्यायवाची शब्दों के एकीकरण, उनके ऐतिहासिक अनुसंधान तथा स्वरूप परिचय विषयक मत वैमिनताके निराकरण एवम् सन्दिग्ध औषधों के निश्चीकरणके सम्बन्धमें जो हमने गवेषणात्मक एवं अनुसंधान पूर्ण नोट लिखे हैं, उनके अवलोकन करने से हमारे विस्तृत अध्ययन एवं कठिनश्रम तथा अध्यवसाय का प्रांशिक निदर्शन हो सकेगा । (इतना होते हुए भी किसी विषय में यदि For Private and Personal Use Only
SR No.020060
Book TitleAayurvediya Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1934
Total Pages895
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size27 MB
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