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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १५ अलाहर सिर में दर्द हो और किसी तरह अच्छा न | मिलाकर गोला बनालें, फिर तरकाल नारे हुए होता हो तो उक्र तैल को २० बूद की मात्रा में बकरे के मोस का पिंज जैसा बमा कर गोले को बकरी के दूध में थोड़ा सा राहद डालकर पिलामा उसके भीतर रक्खें। फिर लाल चित्रक के रस लाभदायी है। इससे मस्तिष्क पुष्ट होता है। और ताल मूली की जड़ का रस इनमें उसका इसके तैल को तिल के तेल में मिलाकर दुबाकर फिर बाहर से चारों तरफ बकरे का मांस लगाना बालों को बढ़ाता है और सिर के जुत्रों लपेट दें फिर अग्नि के समान गरम तेल में उसको को दूर करता है। डालकर भूनतें । और जब वह मांस पिंह भूनकर गरम पानी में तेल डाल कर कुल्ली करना; सिंदूर का सा रंग धारण करले तो निकाल कर मसूड़ों की सूजन, दर्द, खून बहने को माराम रस्खलें। करता है। मात्रा- रती शहद और घी के साथ खाएँ । चेचक के दाग पर गेहूं के आटे में हल्ली और । गुग--इसके सेवन से मनुष्य वीर्यवान होजाता अकोल का तेल मिलाकर पानी से गीला करके है। नपुसकता जाती रहती है। इस पर कौला उबटना रंगको ठीक करता है और कुछ सुन्दर पदार्थ सेवन करना निवेध है। करता है। अोलन ankolam-मल डेरा अंकोल नोट-प्रायः निघण्टुकार अकोल को रेचक Alangiuin decapitalum, Lam.) मानते हैं पर कई प्राचीन इसे संग्राही कहते हैं। चरक सुश्रुतने विषन माना है पर संग्राही विरेची | अकोलमनचर ankolama-machar-अज्ञात । गुण का उल्लेख देखने में नहीं आया। अकोलम् चे ankolan-chetru-ते. अकोलक: ankolakah-सं० पु. अकोला अकोला, अकोल. डेरा [Alangium deca ( Alangium Deca. paptalum, ! pitalum,Ltm.] स० फा० ई०। Lan.) र० सा-सं०। अकालमु ankolamu ते०, ढेरा, अकोल ( A. अकोल कल्क: Aukola kalkah स०० | ___ducapitalum, Lun) ई० मे० मे०। देरे की जड़ की छाल चावल के धोबन में पीस अकोला ankola-म., डेरा, अङ्कोल, शहद डाल कर पीने से अतिसार और विष के अकोली ankoli-कना । अकोला (Ala विकार दूर होते हैं । । अकोले ankole-कनाtugium duca भा०म० ख०२ अति० त्रि० शा० सं० अकोल्य sukolya-गु० । petalum, म. ख० ० ५ अकालम् ankolum-ता० Lan. -स० अङ्काल तैलम् akola tailam स'० क्ली० " फा० इं०। अकोल बोज तेल । Alangium decan- अङ्कालः ankollah-लं० पु. (Cedrus etalum, Lun. ( Oil of-)। बैं० _deodara) देवदारु। रा० नि० व० २३ । वा०३०३८०।। अकोल फल सकाशः ankola-phala-san अकोलक: ankollakah सं० ० (Alan. kashah- सपु०, फल विशेष । संसार में : gium Decape talum, Lun.) अकोल मद०१०१। पिता नाम से प्रसिद्ध है । वै० श० अङ्कोलसारः ankollasarah-सं०० मालव अकोल बद्धवटो ankola baddha hvati प्रसिद्ध स्थावर विष भेव (A kind of pois. -संस्त्री० यो० म० शुद्ध पारे को श्वेत अकोल on ) हेच. ४ का । अफीम, संखिया, के रस में तीन दिन तक भावित करें, फिर पारे के प्रभृति । औ०२०। समान भाग गन्धक मिलाएँ और खरलम बारीक अहाहर ankohara-हिं०संशरा ,अकाल कजली बनालें। फिर अकोल ही के रस को (Alaigium decapetalum, lan.) निघः। For Private and Personal Use Only
SR No.020060
Book TitleAayurvediya Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1934
Total Pages895
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size27 MB
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