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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ९३ [उत्तराधम् ] जहरण ण अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं पुत्वकोडी अंतोमुहुत्तूणाई । पदार्थ-पंचिंदियतिरिक्खजोणियाग भंते ! केवइयं कालं ठिई पं.. ?) हे भगवन् ! पंचेंद्रिय तिर्यक् योनि के जीवों की स्थिति कितने काल की प्रतिपादन की गई है ? (गोयमा ! जहरणेणं अंतोमुहु तं उक्कोसेणं तिरिणपलिनोवमाई,) हे गौतम ! जघन्य स्थिति अंतमु हूर्त की और उत्कृष्ट तोन पल्योपम की होती है , (जलयरपंचिं दयतिरिक्ख जोणियाणं भंते ! केवइयं कालं डिई परणले ?) हे भगवन् ! पंचेंद्रिय जलचर* तिर्यक् योनि के जीवों को स्थिति कितने काल की होती है ? (गोय रा ! जहरणेणं अंतोमुहुरा उक्कोसेणं पुञ्चकोडी,) हे गौतम ! जघन्य स्थिति अंतर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट पूर्व क्रोडवर्ष की होती है, (समुच्छिन जलयरपंचिदिय तरिक्खजोणियाणं पुन्छा,) हे भगवन् ! + समूच्छिम जलचर पंचेंद्रिय तिर्यक् योनिकों को स्थिति कितने काल की होती है ? (गायमा ! जहरणेणं तोमुहुत्तं उक्कोसेणं पुचकांडी,) हे गौतम ! जयन्य स्थिति अंतर्मुहूत की और उत्कृष्ट पूर्व क्रोडवर्ष की हाती है, (अप जरायसंमुन्छि जल यरपंचदिय पुच्छा,) हे भगवन् ! अपर्याप्त समूच्छिम जलचर पंचेंद्रिय जीवों की स्थिति कितने काल की होती है ? (गोयमा ! जहएणणवि अंतोमुहुंरा उक्कोसेणवि अंतोमुहुतं,) हे गौतम ! जघन्य और उत्कृष्ट स्थिति केवल अंतर्मुहूर्त की ही होती है, (पज चयसमुच्छिमालयरपंचिंदिय पुन्छा,) हे भगवन् ! पर्याप्त समूच्छिम जलचर पंचेंद्रिय जोवों की स्थिति कितने काल की होती है ? (ोयमा ! जहएणणं अंतीमुहुरा उक्कोसेणं पुचकोडी अतोमुहुत्त गाई,) हे गौतम ! जघन्य स्थिति अंतमुहूर्त की और उत्कृष्ट अंतर्मुहूर्त न्यून पूर्व कोडवर्ष की होती है, क्योंकि अपर्याप्त काल पृथक् कर दिया गया है। (गम्भववामियज लयरपंचिंदिय पुच्छा,) हे भगवन् ! गभ से उत्पन्न होने वाले जलचर पंचेंद्रिय योनिकों की स्थिति कितने काल की होती है ? (गोयमा! जहरणेणे अंतोमुहुर डक्कोसेणं पुधकोडी,) हे गौतम! जघन्य से अंत. मुहूर्त की और उत्कृष्ट पूर्व क्रोडवर्ष की होती है, (अगजरायगम्भवक्क तिय जलचरपंचिंदिय पुच्छा,) हे भगवन् ! अपर्याप्त गर्भ से पैदा होने वाले पंचद्रिय जीवों की स्थिति कितने काल की होती है ? (गोयमा ! जहएणेणवि अतोमुहुतं उघोसेणावि अंतोमुहुरा,) हे गौतम ! जघन्य भी अंतर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट से भी केवल अंतर्मुहूर्त की होती है । (पजत्तगगन्भवक तियजलयरपंचिंदिय पुच्छा,) हे भगवन् ! पर्याप्त गर्भ से उत्पन्न होने वाले जलचर पंचेंद्रिय जीवों की स्थिति कित्तने काल की होतो है ? (गोयमा ! जहरणेणं अतोमुहुर्श उक्कोसेणं पुष्वकोडी श्र तोमुहुंच णाई,) हे गौतम ! जघन्य स्थिति अंतर्मुहूर्त * पानी के अन्दर चलने वाले । + वात पित्तादि या विना गर्भ से उत्पन्न होने वाले । For Private and Personal Use Only
SR No.020052
Book TitleAnuyogdwar Sutram Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherMurarilalji Charndasji Jain
Publication Year
Total Pages329
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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