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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [ उत्तरार्धम् ] अथ पांच स्थावरों की स्थिति । For Private and Personal Use Only ८३ पुढवीकाइयाणं भंते ! केवइयं कालं ठिई पन्नत्ते ? गोयमा ! जहां अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं बावीसं वाससहस्साईं, सुपुढवीकाइयाणं भंते! केवइयं कालं ठिई पन्नत्ते ? गोयमा ! जहरोणवि अंतो मुद्दत्तं उक्कोसेणवि तोमुहुत्तं, बादरपुढविकाइयाणं पुच्छा, गोयमा ! जहराणेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं बावीसं वाससहस्साईं, अपजत्तगवारपुढाकाईयाणं पुच्छा, गोयमा ! जहरोणवितोमुत्तं उक्कोसेरात्रि अंतोमुहुत्तं, पज्जत्तगबादरपुढविकाइयाणं पुच्छा, गोयमा ! जहराणेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं बावीसं वाससह साई अंतोमुहुत्तूणाई, एवं सेकाइयापि पुच्छावयणं भाणियव्वं, आाउकाइयाणं जहराणेणं अंतोमुहुत्त उक्कोसेणं सत्त वाससहस्साई, सुहुमझाउकाइयाणं प्रोहिया अपजत्तगाणं पज्जत्तगाणं तिराहवि जहराणेवि तोमुद्दत्तं उक्कोसेवि मुहुतं, बादरआउकाइयाणं जहा प्रोहियाणं, या अपज्जत्तगवादरआउकाइयाणं पुच्छा, गोयमा ! जहणणेणवितोमुहुत्तं उक्कोसेरावि अंतोमुहुत्तं, पज्जन्त्तगवादरा |उकाइयाणं पुच्छा, गोयमा ! जहरणेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेां सत्त वाससहस्साइं अंतोमुहुत्तगाई, उकाइगाणं पुच्छा, गोयमा ! जहराणेणं अंतोमुहुतं उक्कोसेणं तिरिए राइंदियाइ, सुहुमतेउकाइ १ - - सु० 'ग्रोहिया अपजत्तयाणं पजत्तयाण य तिरिगा वि पुच्छा,' इत्यपि पाठः ।
SR No.020052
Book TitleAnuyogdwar Sutram Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherMurarilalji Charndasji Jain
Publication Year
Total Pages329
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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