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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra नरक प्रथम द्वितीय+ तृतीय चतुर्थ पंचम www.kobatirth.org [ उत्तरार्धम् ] ८१ भावार्थ- नारकियों की जघन्य स्थिति दश सहस्र वर्ष की और उत्कृष्ट ३३ सागरोपम की होती है, इसी को औधिक सूत्र कहते हैं । और सातों नरकों के पर्याप्त नारकियों की स्थित सिर्फ अंतर्मुहूर्त प्रमाण ही वर्णन की गई है, तथापि पर्याप्त नारकियों की स्थिति अन्तर्मुहूर्त न्यून होती है। इन सातों नरकों की जघन्य और उत्कृष्ट स्थिति निम्न लिखितानुसार जाननी चाहिये पष्ठ सप्तम जघन्य स्थिति दश सहस्र वर्ष एक सागरोपम तीन सागरोपम सात सागरोपम दश सागरोपम सत्तरह सागरोपम द्वाविंशति सागरोपम Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उत्कृष्ट स्थिति १ सागरोपम ३ तीन सागरोपम ७ सात सागरोपम १० दश सागरो म १७ सत्तरह सागरोपम २२ द्वाविंशति सागरोपम ३३ त्रयस्त्रिंशत् सागरोपम इस तरह जघन्य और उत्कृष्ट सातों नरकों की स्थिति वर्णन की गई है, किन्तु जघन्य से अधिक और उत्कृष्ट स्थिति से न्यून सर्व मध्यम स्थिति जाननी चाहिये । अब इसके पश्चात् दंडकानुसार भवनपत्यादि देवों की स्थिति वर्णन करते हैं: अथ भवनपत्यादि देवों की स्थिति । असुरकुमाराणं भंते ! केवइयं कालं ठिई पं० ? गोयमो ! जहां दस वाससहस्साइं उक्कोमे सातिरेगं सागरोवमं, असुरकुमारदेवीणं भंते! केवइयं कालं ठिई परणते ? गोयमा ! जहां दस वाससहस्साई उक्कोसेां श्रद्धपंचमाइ' पलियोवमाइ, नागकुमारीणं भंते । केवइयं कालं ठिई पं० ? गोयमा ! जहराणेखं दस वाससहस्साइं उक्को + 'जा पढपाए जेट्ठा सा बीयाए कणिट्ठा भणिया । या प्रथमाया ज्येष्ठा सा द्वितियायां कनिष्ठा भणिता' ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020052
Book TitleAnuyogdwar Sutram Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherMurarilalji Charndasji Jain
Publication Year
Total Pages329
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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