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________________ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ६८ [ श्रीमदनुयोगद्वारसूत्रम् ] का एक दिन रात, १५ दिन रात्रों का एक पक्ष होता है, दो पक्षों का एक मास होता है, दो मासों की एक ऋतु और तीन ऋतुओं की एक अयण, दो अयणों का एक संवत्सर होता है, इसीतरह पाँच संवत्सरों का एक युग बीस युगों का १०० वर्ष होता है, दश सौ वर्षों का एक सहस्र वर्ष, सौ सहस्र वर्षों को एक लाख वर्ष, चौरासी लाख वर्षों का एक पूर्वाग होता है, इसी प्रकार प्रत्येक को चौरासी लाख से गुणा कर लेना चाहिये । पूर्व त्रुटितांग, त्रुटित, अडड २, अवव २, हुहुए २, उप्पले २. पउो २, नलिण २ अच्छिन २, प्रयुत २, अयुत २, चुलित २, शीर्षप्रहेलिका २। एक पूर्ववर्ती अंग से उत्तर स्थिति पद चौरासी लाख गुणा अधिक जानना चाहिये, सो एतावन्मात्रा गणित का विषय है। अपि तु इसके उपरांत उपमा से कार्य साधन करना चाहिये इसलिये अब उपमा का विषय कहते हैं अथ उपमा का विषय। से किं तं ओवमिए ?, २दुविहे पण्णत्ते तंजहा-पलिअोवमे य सागरोवमे य, से किं तं पलिअोवमे ?, २ तिविहे पण्णत्ते, तंजहा- उद्धारपलिओवमे अहापलिअोवमे खित्त. पलिप्रोवमे अ, से किं तं उद्धारपलिवमे?, २ दुविहे पण्णत्ते, तंजहा- सुहुमे अ ववहारिए अ,तत्थ णं जे से सुहुमे से ठप्पे, तत्थ णं जे से ववहारिए से जहानामए पल्ले सिया जोयणं आयामविक्खंभेणं जोयणं उ8 उच्चत्तेणं तं तिगुगां सविसेसं परिक्वेवेणं, सेणं पल्ले एगाहिअ वेाहिताहिअ जाव. उक्कोसेणं सत्तरत्त [प] रूढाणं संसट्टे संनिचिते भरिए वालग्गकाडोणं ते णं वालग्गा नो अग्नी डहेजा नो वाऊ हरेजा नो कुहेजा नो पलिविखंसिजा नो पुइत्ताए हव्वमागच्छेज्जा,तो णं समएरऐगमेगं वालग्गं अवहाय जावइ For Private and Personal Use Only
SR No.020052
Book TitleAnuyogdwar Sutram Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherMurarilalji Charndasji Jain
Publication Year
Total Pages329
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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