SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 60
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org [ उत्तरार्धम् ] कुच्छी, दो कुच्छीओ धणू, दो धणुसहस्साई गाउयं, चत्तारि गाउयाइं जोयणं । एएणं पमाणंगुलेशं किं पत्रोयणं ? - भवत्था निरयाणं निरयावलीणं निरयपत्थडाणं कप्पाणं विमाणा विमाणावली विमाणपत्थडाणं टंकारं कूडा सेलाणं सिहरीणं पव्भाराणं विजयाणं वक्खाराणं वासाणं वासहराणं वेलाणं वेइयाणं दाराणं तोरणा दीवारा समुदाणं आयाम विक्खं भोच्चत्तोव्वेह परिकखेवा मविज्जति Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir से समास तिविहे पणत्ते, तं जहा सेढो अंगुले पयरंगुले घणंगले | संखेजा जोयाकोडाकोडीओ सेढी, सेढी सेढीए गुणिया पयरं पयरं सेढीए गुणियं लोगो, संखेजपणं लोगो गणि संखेजा लोगो असंखेजपणं लोगो गणिओ असंखेजा लोगा, अांते लोगो गिओ अता लोगा । एएसि णं सेढीअंगुलपयरंगुलघांगुला कयरे कमरे हिंतो बहुवा तुल्ले वा विसेसाहिए वा ? सव्वत्थोवे सेढीअंगुले, पयरंगुले असंखेज्जगुणे, घणंगुले श्रसंखेज गुणे से तं पाले । से तं विभागनिष्फरणे । से तं खेतपमाणे ॥ ' १ - कचिदेतन्नास्ति । २ -"वास हरपव्वयाणं" इत्यप्यधिकः पाठो दृश्यते क्वचित् । .५५ पदार्थ - (से किं तं प्रमाणंगुले ?) प्रमाणांगुल किसे कहते हैं ? (नागुले एगमेगस्स ररणी) एक २ राजा का (चउरंत चक्क हिस्स) जिस । तीन दिशा समुद्र तक और चतुर्थी दिशा हेमवंत पर्वत पर्यन्त इस प्रकार चारों दिशाओं का अन्त किया है अथवा चक्रधारी हो, ऐसे एक एक चक्रवर्ती राजा का ( असोशिए कागणीरयणे ) अष्ट सौवरिंक For Private and Personal Use Only
SR No.020052
Book TitleAnuyogdwar Sutram Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherMurarilalji Charndasji Jain
Publication Year
Total Pages329
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy