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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४८. [ श्रीमदनुयोगद्वारसूत्रम ) है; अपर्याप्त जीवों की अवगाहना जघन्य और उत्कृष्ट दोनों ही अंगुल के असं ख्यात भाग प्रमाण होती है; पर्याप्त गर्भज खेचरों की अवगाहना जघन्य अंगुल के असंख्यात भाग प्रमाण अोर उत्कृष्ट पृथकत्व धनुष की होती है; संमूञ्छिम जलचरों की अवगाहनो उत्कृष्ट १००० योजन की होती है और संमूच्छिम चतुष्पद की पृथक्त्व कोस की होती है; संमूछिम उरःपरिसर्प को पृथक्त्व योजन की अवगाहना होती है; संभूञ्छिम भुजपरिसर्प और संमूछिम नेचर, इन दोनों की भी पथक्त्व धनुष की ही अवगाहना होती है; जलचर पञ्चेन्द्रिय तिर्यक् योनिक गर्भज जीव की उत्कृष्ट अवगाहना १००० योजन प्रमाण होती है। चतुष्पद को उत्कृष्ट अवगाहना ६ कोस प्रमाण होती है; गर्भन उरस्परिसर्प की अवगाहना भी १००० योजन की है, गर्भज भुजारिसर्प की अवगाहना उत्कृष्ट पृथक्त्व कोस प्रमाण है और गर्भज पक्षियों की उत्कृष्ट अवगाहना पृथक्त्व धनुष की होती है। यह सर्व पञ्चन्द्रिय तिर्यक् योनियों की जघन्य और उत्कृष्ट अवगाहना कही गई है। अब इसके आगे मनुष्यों के विषय में विवरण किया जाता है अथ मनुष्य-अवगाहना विषय । मणस्साणं भंते ! के महालिया सरीरोगाहणा पण्णत्ता ? गोयमा ! जहणणेणं अंगुलस्स असंखेजइभार्ग, उक्कोसेणं तिरिण गाउयाई संमुच्छिममणुस्माणं पुच्छा, गोयमा ! जहणणेणं अंगुलस्स असंखेन्जइभार्ग, उक्कोसेण वि अंगु नस्स असंखेज्जइभाग; अपज्जत्तय गम्भवकंतियमणस्प्लाणं भंते ! पुच्छा, गोयमा ! जहणणेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभाग, उक्कोसेण वि अंगुलस्स असंखेज्जइभागं; पज्जत्तयगब्भवक्कंतियमणुस्साणं भंते ! पुच्छा, गोयमा ! जहएणणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेणं तिरिण गाउयाई॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020052
Book TitleAnuyogdwar Sutram Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherMurarilalji Charndasji Jain
Publication Year
Total Pages329
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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