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[ उत्तरार्धम् ]
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सूत्र का बोध सरल हो । उपोद्घात नियुक्त्तयनुगम का स्वरूप यह है कि उसके २५ लक्षण हैं, जो प्रश्नोत्तर के रूप में नीचे दिये जाते हैं
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(१) उद्देश किसे कहते हैं ? जिसका उद्द ेश किया जाय अथवा जो सांमान्य नाम रूप हो उसे उद्देश कहते हैं । जैसे कि -अध्ययन |
(२) निर्देश किस को कहते हैं ? जिसका निर्देश किया जाय अथवा जो विशेष अभिधान पूर्वक हो, जैसे कि सामायिक
(३) निर्गम किसे कहते हैं ? जो वस्तु जहां से निकली हो उसे निर्गम कहते हैं, जैसे कि आवश्यक से सामायिक निकली है।
(४) किस क्षेत्र से सामायिक की उत्पत्ति हुई हैं ? व्यवहार नय से समय
से ।
(५) * किस काल में सामायिक की उत्पत्ति हुई हैं ?
(६) किस पुरुष से सामायिक शब्द निकला है ? सर्वज्ञ पुरुषों ने सामायिक का प्रतिपादन किया है, अथवा व्यवहार नय से भारत वर्ष की अपेक्षा श्री ऋषभदेव भगवान् ने सामायिक चारित्र प्रतिपादन किया है, लेकिन एवम्भूत नय से सामायिक चारित्र अनादि है ।
(७) + किस कारण से गौतमादि गणधरों ने सामायिक को श्रवण किया है ? संयति भाव की सिद्धि के लिये ।
(८) किस प्रत्यय से भगवान् ने इसका उपदेश दिया है ? और किस प्रत्यय से गणधरों ने इसका श्रवण किया है ? - केवल ज्ञानसे भगवान् ने सामा
* सूत्रालापनिष्पन्न निक्षेप का वर्णन आगे किया जायगा । आवश्यक सूत्र में कहा है - " वइसापसुरकारसीए पुव्व हदे सकालम्मि | महसेावज्जाणे श्रणंतर परंपरं सेस" वैशाखशुक्लैकादश्यां पूर्वादेशकाले । महासेनवनोद्याने श्रनन्तरं परम्परं शेषम् ।
अर्थात अनन्तर, परम्पर और शेष, तीनों प्रकार की, वैशाख शुक्ल ग्यारस के दिन महासेन नामक वन के उद्यान- बगीचे में मध्यान्ह के समय की ।
+ "गोयमाई सामाइयं तु किं कारणं निसामिति । " - गौतमादयः सामायिकं तु किं कारणं निशाम्यन्ति ।
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"केवलनाणित्ति अहं अरिहा सामाइयं परिकहेइ । तेसिंपि पचश्रो खलु सव्वन्नु तो निसामिति ॥ १॥" - केवलज्ञानीत्यहमर्हन् सामायिकं परिकथयति । तेषामपि प्रत्यया खलु सर्वज्ञस्ततो निशाम्यन्ति ॥ १ ॥
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