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[ श्रोमदनुयागद्वारसूत्रम् ] __ से कि त नोआगमो भावाए ? दुविहे पण्णते, तं जहा-पसत्थे अ अपसत्थे ।
से किं तं पसत्थे ? तिविहे पण्णत्ते, त जहा-णाणाए दंसणाए चरित्ताए से तपसत्थे ।
से कि त अपसत्थे ? चउठिवहे पण्णते, त जहाकोहाए माणाए मायाए लोभाएं, से त अपसत्थे, से त णोआगमो भावाए, से त भावाए, से ताए।
___ पदार्थ -(से किं तं पाए ? ) आय किसे कहते हैं ? ( ग्राए) जो अप्राप्त की प्राप्ति हो उसे आय-लाभ कहते हैं, और वह (चरविहे पएणत्ते,) चार प्रकार से प्रति पादन किया गया है, (तं जहा-) जैसे कि-(नामए) नाम आय (उवणा) स्थापना प्राय (दव्वाए) द्रव्य आय और (भावाए)भाव आय । (नामठवणायो) नाम और स्थापना (पुव्यं भणियायो ।) पूर्व में वर्णन की गई है।
(से कि तं दव्याए ?) द्रव्य आय किसे कहते हैं ? (दवाए) जिसे द्रव्य की प्राप्ति हो उसे द्रव्य आय कहते हैं, और वह दुविहे पण्णते, दो प्रकार से प्रतिपादन को गई. है,(तं जहा.) जैसे कि-(आगम यो अ) आगमसे और (नोग्रागमनो श्र1) नो आगम से।
(से किं तं आगमत्रो दवाए ?) आगम से द्रव्य आय किसे कहते हैं ? (श्रागम. श्रो.) आगम से द्रव्य आय उसे कहते हैं कि (जस्सणं) जिसने (आयत्तिपदं) 'आय' रूप एक पदको (सिक्खिय) सीख लिया हो (ठित) हृदय में स्थित कर लिया हो (जितं) अनुक्रम से पढ़ भी लिया हो (मितं) श्लोकादि अक्षरों के प्रमाण को जान लिया हो (परिजितं) अननुक्रम से भी पढ़ लिया हो (जाव) यावत, कम्हा ?) क्यों ? (अणुपयोगी दव्वमितिकह) द्रव्य अनुपयुक्त होने से, (नेगमस्स णं नैगमनय के मत से (जावइया) जितने (अणुवउत्ता आगमओ) आगम से अनुपयुक्त हैं (तावइया) उतने ही (ते दव्याया) वे द्रव्याय हैं (नाव) * यावत् ( तं प्रागमो दबाए ।) यही आगम से द्रव्य आय है।
(से किं तं नोआगमनो दव्याए ?) नोआगम से द्रव्याय किसे कहते हैं ? (नोग्रागमश्री दवाए) नोआगम से द्रव्याय (तिविहे पएणत्ते,) तीन प्रकार से प्रतिपादन की गई है, (तं जहा-) जैसे कि-(नाणगसगेरदवाए) ज्ञशरीर द्रव्य आय (भवियसरीरदबाए) भ.
* 'जाव' यावद शब्द पूर्व में वर्णन किये हुये अधिकार का सूचक है । इसी प्रकार सर्वत्र जानना चाहिये।
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