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[ श्रीमदनुयोगद्वारसूत्रम् ] सकिं तं दव्वसंखा ? दुविहा पण्णत्ता, तं जहाआगमो य नोआगमो य जाव, से किं तं जाणयसरीर भविषसरीरवइरित्ता दव्यसंखा ? तिविहा पण्णत्ता, तं जहाएगभविए बद्धाउए अभिमुहणामगोत्ते अ। एगभविए णं भंते ! एगभविएत्ति कालो केवचिरं होइ ? जहरणेणं अंतोमुहत्तं, उकासेगां पुवकोडी। बद्धाउएणं भंते ! बद्धाउएत्ति कालमो केवञ्चिरं होइ ? ज० अं०, उ० पुवकोडीतिभागं। अभिमुहनामगोए णं भंते ! अभिमुहनामगोएत्ति काल. श्रो केवच्चिरं होइ ? जहणणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं अंतोमुहत्तं । इयाणी को णो के संखं इच्छइ, तत्थ नेगमसंगहववहारा तिविहं संखं इच्छंति, तंजहा-एगभवियं बद्धाउअं अभिमुहनामगोत्तं च। उज्जुसुमो दुविहं संखं इच्छइ, तंजहा-बद्धाउअं च अभिमुहनामगोत्तं च ।तिरिण सदणया अभिमुहनामगोत्तं संखं इच्छंति,सेतं जाणयसरीरभवियसरीस्वइरित्ता दव्यसंखा, से तं नोआगमओ दव्यसंखा, से तं दव्वसंखा।
__ पदार्थ-(से किं तं संखपमाणे ?) सङ्घ याप्रमाण किसे कहते हैं ? (संखप्पमाणे) जिसके द्वारा गणना को जाय उसे संख्याप्रमाण के कहते हैं, और वह (अटविहे पएणते,)
*प्राकृत भाषा के "शषोः सः सूत्रसे 'शङ्ख' के 'श' को 'स' प्रादेश होजाता है । अतः यहाँ पर 'संखा' शब्द से ' सङ्ख्या' और 'शङ्ख' दोनों ही का ग्रहण किया जाता है । जैसे कि 'गो' शब्द से पशु, भूमि इत्यादि का । यथा-गोशब्दः पशुभूभ्यप्तु, वाग्दिगर्थप्रयोगवान् । मन्दप्रयोगे दृष्टयम्बुवजूस्वर्गाविधायकः ॥१॥” इसी प्रकार यहाँ पर भी 'संखा' प्राकृत में होने से 'सङ्ख्या' और 'शङ्ख' की प्रतीति होने से दोनों ही का ग्रहण किया गया है । इमलिये सुज्ञ जन नाम-स्थापना-द्रव्यादि विचार में 'सङ्ख्या' अथवा 'शङ्ख' जो शब्द घटे उसी का प्रयोग करें।
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