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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २१६ [ श्रीमदनुयोगद्वारसूत्रम् ] प्रदेशों के दृष्टान्त से सप्तनयों का स्वरूप निम्न प्रकार जानना चाहिये । (णेगमो भणइ-) नैगम नय कहता है-(छएह पएसो) छह प्रकार के प्रदेश हैं, (तं जहा.) जैसे कि(धम्मपएसो) धर्मास्तिकाय ४ का प्रदेश (अधम्मपएसो) अधर्मास्तिकाय का प्रदेश (पागास पएसो) आकाशास्तिकाय का प्रदेश (जीवपएसो) जीव का प्रदेश (खंधपएसो) स्कन्ध का प्रदेश और (देसपएसो) देश का प्रदेश । इस प्रकार नैगम नय से षट् प्रदेश हुए। ___( एवं वयंत ) इस प्रकार भाषण करते हुए ( गम ) नैगम को (संगहो भणा-) संग्रह नय कहता है (जं भणसि ) जो तू कहता है कि ( छण्ह पएसो) छत्रों के प्रदेश हैं (तं न भवइ,) वह नहीं होता है, (कम्हा ?) क्यों ? (जम्हा) इस लिये कि (जो देसपएसो) जो देश का प्रदेश है (सो तस्सेव दव्वस्स) वह उसी के द्रव्य का है, (जहा को दिटुंतो ?) जैसे कोई दृष्टान्त है ? (दासेण में खरो की ग्रो) मेरे नौकर ने गधा खरोदा है, दासोऽवि मे) दास भी मेरा हो है और (खiऽवि मे) गिधा भी मेरा ही है । (तं मा भणाहि) इस लिये ऐसा मत कहो कि ( छगह पएसो ) छओं का प्रदेश है, लेकिन (भणहि पंचए हैं पएसो,) कहो कि पांचों के प्रदेश हैं, (तं जहा- जैसे कि ( धम्मपएसो अधम्मपएसो प्रामासपएसो जीवपएसो खंधाएसो,) धर्मास्तिकाय का प्रदेश, अधर्मास्तिकाय का प्रदेश, आका शास्तिकाय का प्रदेश, जीवास्तिकाय का प्रदेश और स्कन्ध का प्रदेश । (एवं वयंत संगह) इस प्रकार कहते हुए संग्रह नय को ( ववहारो भणइ. ) व्यवहार नय कहता है कि (जं भणसि पंचएह पएसो,) जो तू कहता है कि पांचों के प्रदेश है, (तं न भवइ,) वह सिद्ध नहीं होता है ( कम्हा ?) कैसे ? (जइ जहा) x धर्म शब्द से यहाँ पर धर्मास्तिकाय जानना चाहिये । * जैसे कि द्रव्य का देश और उसी का प्रदेश, तो वह प्रदेश उस द्रव्य का ही है, अन्य का नहीं। + देश प्रदेश सम्बन्धी होने से प्रदेश का ही है, अन्य का नहीं । * यहाँ पर इतना विशेष जानना चाहिये कि यह वर्णन अवशुद्ध संग्रह नय का है, क्यों कि विशुद्ध संग्रह नय अनेक द्रव्य और प्रदेशों के विकल्पों को नहीं मानता और सभी पदार्थों को सामान्य रूप से ही स्वीकार करता है। संग्रह नय ने उत्तर दिया कि यह दृष्टान्त है, जैसे कि लौकिक में यह व्यवहार देखा जता है और कहा जाता है। For Private and Personal Use Only
SR No.020052
Book TitleAnuyogdwar Sutram Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherMurarilalji Charndasji Jain
Publication Year
Total Pages329
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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