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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११६ [ श्रीमदनुयोगद्वारसूत्रम् ] एएसिं पल्लाणं कोडाकोडी भज्ज दस गुणिमा तं सुहमस्स खेत्तसागरोवमस्स एगस्स भवे परीमाणं ॥१॥ एएहिं सुहमेहिं खेत्तपलिओवमसागरोवमेहि कि पोषणं ? एएहि सुहमपलिओवमसागरोवमेहि दिट्टिवाए दवा मविज्जति । (सू० १४३) पदार्थ-(से किं तं खेत्तपलिनोवमे ?) हे भगवन् ! क्षेत्रपल्योपम किसको कहते हैं ? (खेत्तपलिअोवमे दुविहे पएणते तंजहा-) भो शिष्य ! क्षेत्रपल्योपम के दो भेद हैं, जैसे कि (सुहुमेय ववहारिए अ) सूक्ष्म और व्यावहारिक, (तत्थ ण जे से सुहु मे से ठप्पे,) उन दोनों में जो सूक्ष्म है उसको छोड़िये, किन्तु (तत्थ ण जे से ववहारिए) उन दोनों में जो व्यवहारिक है (से जहानामए पल्ले सिया) वह ऐसा जानना यथा-धान्य के पल्य के समान पल्य हो और (जो अणायामविक्खंभेणं) योजन मात्र दीर्घ तथा विस्तार युक्त भी हो, पुनः (जोयणं उव्वेहेणं ) एक योजन गहरा हो, तथा ( सं तिगुणं सविसेसं परिक्खेवेणं ) उसकी परिधि तीन गुणी से कुछ अधिक हो, फिर (से णं पल्ले एगाहियवेाहितेत्राहि जाव) उस पल्य में एक दिन, दो दिन, तीन दिनसे लगाकर सात दिन तक के वृद्धि किये हुए (भरिए वाला कोडीणं,) बालानों की कोटियों से धनता युक्त भर दिया जाय, फिर (तेणं वालग्गा णो अग्गी डहेजा,) उन बालापों को अग्निभी दाह न कर सके (जाव नो पूइत्ताए हव्वमा गच्छेजा,) यहां तक कि उनमें दुर्गध भी पैदा न हो, (जेणं तस्स पल्लस्स) जिससे कि उस पल्य के (अागासपएसा तेहिं बालन्गेहि अप्फुन्ना,) आकाश प्रदेश उन बालानों से स्पशित हुए हों, (तो णं समए २ एगमेगं श्रागासपएसं अवहाय) फिर उसमें से समय २ में एक २ आकाश प्रदेश अपहरण-निकाला जाय, तो (जावइएणं कालेणं) जितने काल में (से पल्ले खीणे नाव निट्टिए भवइ,) वह पल्य क्षीण यावत् विशुद्ध होता है, (सेतं ववहारिए खेत्त पलिश्रोवमे ।) वही व्यावहारिक क्षेत्रपल्योपम है, किन्तु एएसि पल्लाण' कोडा कोडी भवेज दस गुणिया । तं ववहारियरस खेत्तसागरोवमम्स एगम्स भवे परीमाणं ॥१॥ इन पल्यों को दश कोटा कोटि गुणा करने से एक व्यवहारिक क्षेत्र सागरोपम का परिमाण होता है ॥१॥ अर्थात् उक्त पल्य को दश कोटा कोटि गुणा करने से एक व्यवहारिक क्षेत्र सागरोपम होता है । (एएहिं ववहारिएहिं खेत्तपलिओवमसागरोवमेहि कि पोय ?) इन व्यावहारिक क्षेत्र पल्योक्म और सागरोपम से क्या प्रयोजन है ? For Private and Personal Use Only
SR No.020052
Book TitleAnuyogdwar Sutram Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherMurarilalji Charndasji Jain
Publication Year
Total Pages329
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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