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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [ उत्तरार्धम् ] का आठवां भाग होता है ( दो अठभाइयानो चरभाइया ) दो आठ भागिकाओं से एक चतुर्भागिका होती है ( दो चउभाइयाओ) दो चतुर्भागिकाओं से ( ग्रहमाणी ) अर्द्धमाणी होती है और (दो श्रदमाणीओ) दो अर्द्धमाणी से ( माणी) दो सौ छप्पन पल प्रमाण की एक माणी होती है ( एएणं रसमाणप्पमाणेणं किं पोयणं ? ) इस रस मान प्रमाण के कथन करने का प्रयोजन क्या है ? (एएणं रसमाणप्यमाणेणं वारक १, घडगर, करक ३, कलस ४, ककारिय ५, दइए ६, कुडिय ७, करोडिसंसियाणं रसाणं रसमागष्पमाणनिव्वत्तिलक्खणं भवइ, से तं रसमाणपमाणे । से तं माणे ) इस रसमान प्रमाणसे वारक घट, कलश, करक, गर्गरो-गागर, दृतिक-चम मयभाजन-मशक, कुडिका और कुडा इत्यादि के आश्रय भूत जो रस हैं उन रसों के रसमान प्रमाण की उक्त प्रमाण से ही सिद्धि होती है । इसी लिये इसे 'रस मान प्रमाण' कहते हैं । भावार्थ-रसमान प्रमाण धान्यमान प्रमाण से चतुर्भागाधिक होता है और उसकी श्राभ्यन्तर ही शिखा होती है । उसके लिये निम्नलिखित प्रमाण कथन किया गया है। जैसे कि चार पल प्रमाण चतुःषष्ठिका होती है, आट पल प्रमाण द्वात्रिंशिका, षोडश पल प्रमाण षोडशिका, द्वात्रिंशत् पल प्रमाण अष्टभागिका, १२८ पल प्रमाण अर्द्धमाणी और २५६ पल प्रमाण माणी होती है । अतः दो चतुः षष्ठिका की एक द्वात्रिंशिका और दो द्वात्रिंशिका की एक षोडशिका होती है। फिर दो षोडशिकाओं की एक अष्टभागिका, दो अष्टभागिकाओं की एक चतुर्भागिका, दो चतुर्भागिकाओं की एक अर्द्धमाणी और दो अर्द्धमाणियों की एक माणी होती है । यह सब मान मगध देश की अपेक्षा से है । इसका मुख्य प्रयोजन वारक, घट, करक, कलश, गर्गरी, दृति, कुडिका और कुडादि में जो रस भरा र हता है उसकी नाप जानना है । इसीलिये इसे 'रसमान प्रमाण' कहते हैं। अथ उन्मान प्रमाणा विषय । से किंतं उम्माणे ? जगणं उम्मिणिजइ, तं जहा-अद्ध करिसो १, करिसो २, अद्धपलं ३, पलं ?, अद्धतुला ५, तुला ६, अद्धभारो ७, भारो ८, दो अद्धकरिसो करिसो, दो करिसो श्रद्धपलं, पंचुत्तर पलसइया तुला, दस तुलाईओअद्ध भारो,वीसं तुलाओ भारो,एएणं उम्माणप्पमाणेणं किं पोयणं? For Private and Personal Use Only
SR No.020052
Book TitleAnuyogdwar Sutram Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherMurarilalji Charndasji Jain
Publication Year
Total Pages329
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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