________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अर्थ 14. एकत्रिंशत्तम अनुयोगदार सूत्र-चतर्थ यू, है नो आगमओय // 10 // से किं तं आगमओ दव्वावस्सयं ? आगमओ / दवावस्सयं-जम्सणं आवस्सएतिपदं सिक्खितं, ठितं, जितं, मितं. परिजितं नामसमं, घोससम,अहीणक्खा,अणच्चक्कर,अब्बाइडक्खरं,अक्खलियं, अमिलियं, अवच्चामेलियं, पडिपुण्णं, पडिपुण्णघोसं, कंट्ठोढविष्पमुक्कं, गुरुवायणोवगयं, / से णं तत्थ-वायणाए, उत्तर-अहो शिष्य ! द्रव्य आवश्यक के दो भेद कहे हैं. तद्यथा-मागम से और नो आगम से. // 10 // प्रश्न-अहो भगवन् ! आगम से द्रव्य आवश्यक किसे कहते हैं ? उत्तर-अहो शिष्यः किसीने "आवश्यक"A ऐसे पद को सीखलिया है, हृदय में स्थिन किया है, अनुक्रम पूर्वक पठन किया है, अक्षरादिक की ! मर्यादा युक्त जाना है, अपने नामकी तरह अच्छी तरह स्मरण किया है,नदत्तादि दोष रहित बरावर किया है, अक्षरोंकी-न्युनता रहित, अक्षरों की विरलता रहित, अक्षरोंकी अस्वच्छता रहिन, अक्षरादि का गडब रहित. मनः कल्पना से नहीं पलटाया हवा, हस्वदीर्घ से प्रति पूर्ण, कंठादि स्थान के दोष रहित, गुरु की प्रसन्नता पूर्वक धारण किया है और वह आवश्यक पद वाचना पृच्छना, परिवर्तना और धर्मकथा से न्यवहृत किया है परंतु एक अनुप्रेला उस में नहीं है, उस पदको द्रव्य आवश्यक कहते हैं. बर्यात् यह उस के अर्थ में परमार्थ से उपयोग लगावे नहीं. क्योंकि उपयोग लगाने से भाव आवश्यक होता है. प्रश्न उसे * आश्यक पर चार निक्षेपे 488 For Private and Personal Use Only