________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनुवादक बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी अवत्तव्वए, तिसमय ठिइयाओ आणुपुधीओ, एगसमय दिईयाओ अणाणुपुवीओ दुसमय ढिईओ अवत्तन्वगाई, से तं गमववहाराणं अट्ठपय परूवणया॥ एयाएणं णेगम ववहाराणं अटुपय परूवणयाए किं पयोधणं ? एयाएणं णेगम ववहाराणं अपय परूवणयाए णेगम बवहाराणं भंगसमुक्रित्तणया कजइ // 79 // से किं तं णेगम ववहाराणं भंग समुक्तित्तणया ? णेगम ववहाराणं भंगसमुक्तित्तणया, अस्थि आणुपुची, आत्थि अणाणुपव्वी, अत्थि अवत्तव्वए. एवं दवाणुपुव्वी गममेणं कालाणुपुवीएवि ते चेव छवीसं भंगा भाणियन्वा जाव से तं गम ववहाराणं अवक्तव्य. बहुत तीन समय की स्थितिवाले आनुपूर्वी, बहुत एक समय की स्थितिवाले अनानुपूर्वी बहुत दो समय की स्थितिवाले अवक्तव्य. यह नैगम व्यवहार नय से अर्थ पद परूपना का कयन हुवा. अहो भगवन् ! इस नैगम व्यवहार नय की अर्थ पद प्ररूपना का क्या प्रयोजन है ? अहो शिष्य ! नैगमी व्यवहार नय की अर्थ पद प्ररूपना से नैगम व्यवहार नय का भंग समशीर्तन होता है // 79 // अहो है भगवन् ! नैगम व्यवहार नय से भंग समुत्कीर्तन किसे कहते हैं ? अहो शिष्य ! आनुपुर्वी है, अन नुपुर्वी है, अबक्तव्य है, यों द्रव्यानपूर्वी में जैसे छब्बीस भांगे कहे हैं वैसे ही यहां पर कालानुपुर्वी प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी. For Private and Personal Use Only