________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सत्र अप्पा बहु नत्थि // संगहस्स आणुपुव्वी दवाइं किं अत्थि णस्थि ? नियमा अत्या एवं तिणिधि, सेसगदाराइं जहा दव्याणपुबीए संगहस्स तहा खेत्ताणुपुवीएवि भाणियब्वाई, जाव से तं संगहस्स अगोवणिहिया खेत्ताणुपुव्वी // से तं अणोव. णिहिया खेत्ताणुपुब्बी // 70 // से किं त उवणिहिया खेत्ताणुपुवी ? उवणिहिया खेत्ताणुपुवी तिविहा पण्णत्ता तंजहा-पुवाणुपुब्बी, पच्छाणुपुव्वी, अणाणुषुब्बी // 71 // से किं तं पुवाणुपुब्बी, ? पुढ्याणुपुब्बी अहोलोए, तिरिअलोए, भाव. यहां अल्पा बहुत्व नहीं है. संग्रह नय से आनुपूर्वी द्रव्य की अस्ति है या नस्ति है ? अहो / शिष्य ! नियमा अस्ति है ऐसे ही तीनों का जानना. शेष सब द्वार जैसे संग्रह नय से द्रव्यानुपूर्वी के 2 कहे वैसे ही क्षेत्रानुपूर्वी के जानना. यावत् यह अनुगम. यह संग्रह नय की अनुपनिधि का क्षेत्रानुपूर्वी हुई. यह संपूर्ण अनुपनिधि का क्षेत्रानुपूर्वी का कथन हुषा. // 70 // अब उपनिधि का क्षेत्रानपूर्वी का कथन कहते हैं-अहो भगवन् ! उपनिधि का क्षेत्रानुपूर्वी किसे कहते हैं ? अहो शिष्य ! उपनिधि का क्षेत्रानुपूर्वी के तीन भेद कहे हैं. 1 पुर्वानुपूर्वी, 2 पच्छानुपूर्वी 3 अनानुपूर्वी. // 71 !! अहो भगवन् ! पर्वानपूर्वी किसे कहते है ? अहो शिष्य ! अधोलोक, तीळ लोक व ऊर्ध्व लोक. यइ मनपर्वी हुई A8+ एकत्रिंशत्तम्-अनुयोगद्वार सूत्र-चर्तुथ मूल 42842 अनिधि का क्षेत्रानुपूर्वी अथे For Private and Personal Use Only