________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 1. अनुवादक बाल ब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी 20 हिया खेत्ताणुपुवी // 64 // से किं तं संगहस्स अणोवणिहिया खेत्ताणुपुवी?संगहस्स अणोवणिहिया खेत्ताणुपुची पंचविहा पण्णत्ता तंजहा-अट्ठपय परूवणया, भंग समुकित्तणया, भंगावदसणया, समोयारे, अणुगमे // 65 // से किं तं संगहस्स अट्ठाय परूवणया ? संगहस्स अट्ठपय परूवणया ! तिपएसोगाढे आणुपुव्वी, चउप्पएसोगाढे आणुपुत्री जाव दस पएसोगाढे आणुपुब्बी, संखिंज पएसोगाढे आणुपुब्बी, असंखिज्ज पएसोगाढे आणुपुव्वी, एग पएसोग.ढे अणाणुपुल्वी, दुपएसो गाढे अवत्तव्वय, से तं संगहस्स अट्ठपए परूवणया // एयाएणं संगहस्स अट्ठपय क्षेत्रानुपूर्वी का कथन हुवा. // 64 // अब संग्रह नय आश्री क्षेत्रानुपूर्वी का कथन कहते हैं. अहो भगवन् ! लंग्रह नय से अनुपनिधि का क्षेत्रानुपूर्वी किसे कहते हैं ? अहो शिष्य ! संग्रह नय से अनुपनिधि का क्षेत्रानुपूर्वी के पांच भेद कहे हैं तद्यथा-, अर्थपद प्ररूपना, 2 भंग समुत्कीर्तन, 3 भंमोपदर्शनता, 4 समवतार व 5 अनुगम. // 65 // अहो भगवन् ! संग्रह नय से अर्थपद मरूपना किसे कहते हैं ? अहो शिष्य ! तीन प्रदेशावगाही आनुपूर्वी, चार प्रदेशावगाही आनपूर्वी यावत् संख्यात प्रदेशावगाही आनुर्वी, असंख्यात प्रदेशावगाही आनुपूर्वी, एक प्रदेशावगाही आनुपूर्वी, और द्विप्रदेशाव प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी* For Private and Personal Use Only