________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -- 4.अनुवादक बालबमचारी मुनि श्री भगोबरामी भंग समुक्त्तिणया अस्थि आणुपुब्बी अत्थि अणाणुपुव्वी अस्थि अवत्तबए, एवं दब्वाणुपुठवी गमेणं, खेत्ताणुपुयीएऽवि तं चेव छील भंगा भाणियव्वा जाव में से णेगम यवहागणं भंग समुक्त्तिणया // एयाएणं णेगम ववहाराणं भंग समुक्कितणयाए किं पयोयणं ? एयाएणं णेगम यवहाराणं भंग समुक्कित्तणयाए णेगम ववहाराणं भंगोवदसणया कजइ // 6 // से किं तं गम ववहाराणं भंगो वदंसणया ? गम ववहाराणं झंगोवदंसणया तिपएसोगाढे आणुपुब्बी, एग पएसोगाढे अणाणुपुब्बी, दुपएसोगाढे अवत्तव्यए, तिपएसोगाढा आणुपुब्बीओ, समुत्कीर्तना से आनुपूर्वी है, अनानुपूर्वी है. अवक्तव्य है यों जिस प्रकार द्रव्यानुपूर्वी के 26 भांगे / किये थे वैसे ही इस क्षेत्रानुपूर्वी के 26 भांगे करना यावत् यह नैगम व्यवहार नय के मत से भंग / समुत्कीर्तन हुवा. अहो भगवन् ! नैगम व्यवहार नय के मत से भंग समुत्कीर्तन का क्या प्रयोजन ? अहो शिष्य ! नैगम व्यवहार नय की भंग समुत्थीतना से भंगोपदर्शन होता है. // 60 // ओ वन् ! नैगम व्यवहार नय से भंगोपदर्शन किसे कहते हैं ? अहो शिष्य : तीन प्रदेशावगाही समानुपूर्वी, एक प्रदेशीवगाही अनानुपूर्वी, द्विमदेशोवगाही अवक्तव्य, बहुत तीन प्रदेशावगाही बहुत काशक राजावहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी. अर्थ For Private and Personal Use Only