________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ल पुवाणुपुधी धम्मत्थि काएं, अधममत्थकाए आगासस्थिकाए, जीवस्थिकाए, पोग्गलत्थिकाए, आद्धसमए, से तं पुवाणुपुब्बी // मे किं तं पच्छाणुपुवी ? पच्छाणुपुची अडासमए पोग्गलस्थिकाए जीवस्थिकाए आगासस्थिकाए अहम्मस्थिकाए धम्मत्थिकाए, से तं पच्छाणुपुब्धी // से किं तं अणाणपुवी ? एयाए चेव एगाइआए एगुत्तरियाए, छगच्छगयाए सेडीए अण्णम.भासी दुरूवणो से तं भगवन् ! पूर्वानुपूर्वी किसे कहते हैं ? अहो शिष्य ! पूर्वानुपूर्वी-१ पासत काया, 2 अधर्मास्तिकाया. 3 आकाशास्ति काया, 4 जीवास्तिकाया. 5 पुद्रलास्तिकाया, और 6 अद्धासमय-(काल) है. अहो भगवन् ! पच्छानुपूर्वी किसे कहते हैं ? अहो शिष्य ! पच्छानुपुर्वी सो-१ अद्धाममय, 2 पुद्गलास्तिकाया, 3 जीवास्तिकाया. 4 आकाशास्ति काया, 5 अधर्मास्ति काया और 6 धर्मास्ति काया. अहो भगवन् ! अनानुपूर्वी किसे कहते है ? अहो शिष्य ! इन छ ही द्रव्य को एकादे अंक से उत्तरोत्तर श्रेणी से गुना करते जावे जैसे एकको दो गुणा करने से दो हो, दो को नीन से गुना करने से दो तीय 46 होवे, 6 को 4 से गुना करने से 24 होवे, 24 को 5 से गुना करने से 120 होवे और 120 को 6 से गुना करने से 720 होवे, इस संख्या में से दो कम करे अर्थात् 718 की संख्या को अनानुपूर्वी कहते है-प्रथम-१-२-३-४-५-६ यह पूर्वानुपूर्वी हुए. 6-5-4-1-2-1 यह पच्छानुपूर्व / 498 अनुवादकबालब्रह्मचारी श्री अमोहकमान पजा+ प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवस हायजी ज्वालाप्रसादी. For Private and Personal Use Only