________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir B सूत्र अर्थ HP एकत्रिंशत्तम्-अनुयोगद्वार सूत्र-चतुर्थ मूल भागं वा फुसंति जाव सबलोगं या फुसति / णाणा दवाई पडुच्च नियमा सबलोगं फुपति // णेगम ववह राणं अणाणुपुब्बी दव्याई लोयस्स कि संखेजइ भाग फुसंति जाव सबलोग फुसंति ? ए दब्बं पडुच्च नो संखिज्जइ भागं फुसंति. असंखिज्जइ भागं फुसंति, नो सखिजे भागे फुसंति नो असंखिजे भागे फुसंति, नो सवलोयं फुसंति / नागा दवाई पडुच्च नियमा सव्वलोयं फुसंति, एवं अवत्तव्यग दवाई भाणियब्वाइं // 33 // णेगम ववहाराणं आणुपुत्वी दवाई कालओ केवच्चिरं लोक में स्पर्श करते हैं और बहुत द्रव्य आश्री नियमा सब लोक को स्पर्शते हैं. अहो भगवन् ! अनानपूर्वी द्रव्य लोक का संख्यात भाग याचत क्या सब लोक स्पर्शता है ? अहो शिष्य ! एक द्रव्य की अपेक्षा से लोक का असंख्यातवा भाग ही स्पर्शवा है परंतु संख्यात भाग, संख्यातवा भाभ या सब लोक को नहीं स्पर्शता है और अनेक द्रव्य की अपेक्षा से सब लोक को स्पर्शता है. जैसे अनानुपूर्वी का कटा वैसे ही अवक्तव्य का कहना x. // 33 // पांचवा काल द्वार-अहो भगवन् ! नैगम, व्यवहार ना की अपेक्षा से आनी द्रव्य की कितनी स्थिति कही है? अहो शिष्य ! एक द्रव्य की x क्षेत्र द्वार व स्पर्शना द्वार में विशेषता यह है कि एक प्रदेश में अवगाह कर रहा हुवा द्रव्य छ दिशि के छन / मध्य क एक यो सात को स्पशन कर सकता है Hd अणुगम विषय 14 For Private and Personal Use Only