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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir E0% B80 एकत्रिंशत्तम-अनुयोगद्वार सूत्र-चतुर्थ मूल <Page भावोवकमे, से तं भावोवक्कमे // से तं उवक्कमे // 13 // * // अहवा उवक्कमे छबिहे पण्णत्ते तंजहा-आणुपुव्वी, नाम, पमाणं, वत्तव्वया, अत्थाहिगारे, समोयारे // 14 // से किं तं आणपव्वी ? आणपव्वी दसविहा पण्णत्ता, तंजहा-नामा णुपुवी, ठवणाणुपुब्बी, दव्वाणुपुब्बी, खेत्ताणुपुब्बी, कालाणुपुवी उकित्ताणुपुव्वी, / गणणाणुपुवी, संठाणाणुपुब्धी, सामायारीयाणुपुवी, भावाणुपुव्वी // नामठवणाओ वह बात राजाने किसी से कही नहीं. प्रधानने उस के मनोभाव जानकर वहां एक अच्छा तलाव बनवाया. यह देख राजा प्रधान की बुद्धि से संतुष्ट हवा. यों राजा के मनोगत भाव जाना. वह प्रधान की बुद्धि. इनोंने आरंभ के कार्य में अपनी बुद्धि लगाइ इस मे अप्रशस्त उपक्रम कहा गया. और प्रशस्त उपक्रम सो गुरु आदि ज्येष्ठ श्रेष्ठ जनों के इंगित आकार से अभिप्राय को जानकर कार्य करे सो. यह नो आगम से भाव उपक्रम हुवा. यह भाव उपक्रम का कथन हुवा. यह उपक्रम का वर्णन हुवा // 13 // और भी विशेष प्रकार शास्त्रों के भाव जानने को उपक्रम का कथन विस्तार से कहते हैं. उपक्रम के और भी छ भेद कहे हैं जिन के नाम-१ अनुपूर्वी, 2 नाम, 3 प्रमाण, 4 वक्तव्धता, 5 अर्थाधिकार, और 6 सयोयार / / 14 // अहो भगवन् ! आनुपुर्वी किसे कहते हैं ? अहो शिष्य ! आनुपूर्वी के दश भेद कहे हैं. तद्यथा-नामानुपूर्वी, 2 स्थापनानुपूर्वी, 3 द्रव्यानुपूर्वी, 4 क्षेत्रानुपूर्वी, 5 कालानुपूर्वी, 6 उत्कांतानुपूर्वी, ॐ गणणानुपूर्वी, 8 संस्थानानुपूर्वी. 9 समाचारानुपूर्वी और 1.0 भावानुपूर्वी. इन दश में से नामानुपूर्वी व उपक्रम का कथन 2004880 488 For Private and Personal Use Only
SR No.020050
Book TitleAnuyogdwar Sutram
Original Sutra AuthorN/A
Author
Publisher
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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