________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 8 + एकत्रिंशत्तम-अनुयोगद्वार सूत्र-चतुर्थ भविय सरीर वइरित्ते दव्योवकमे // से तं नो आगमओ दवावक्कमे // से तं दबोवक्कमे // 10 // से किं तं खेत्तोवक्कमे ? खेत्तोवक्कमे-जण्णं हलकुलियाईहिं खेत्ताई उवक्कमिजति. से तं खेतोवक्कमे // 11 // से किं तं कालोवक्कमे ? कालोवक्कमे ! जं गं नालियाईहिं कालस्सोवक्कमणं कीरइ, से तं कालोवक्कमे // 12 // से किं तं भावोवक्कमे ? भावोवक्कमे ! दुविहे पण्णत्ते तंजहा-आगमओय नो आगमोओय, आगमओ जाणए उवउत्ते।नो आगमओ दुविहे पण्णत्ते तंजहा-पसत्थेय अपसत्थेय, या नाश करे यह वीश्र द्रव्य उपक्रम हुवा. यह ज्ञ शरीर भव्य शरीर व्यतिरिक्त द्रव्य उपक्रम का कथन हुवा. यह नो आगम द्रव्य उपक्रम व द्रव्य उपक्रम का कथन हुवा | // 10 // अहो भगइन् / क्षेत्रोपक्रम किसे कहते हैं ? अहो शिष्य ! हल और कुलि करके क्षेत्रादि का उपक्रम वा वस्तु विनाश किया जाता है उसे क्षेत्रोपक्रम कहते हैं // 1 // अहो भगवन् ! कालोपक्रम किसे कहते हैं ? अहो शिष्य ! घटिकादि से काल का जो प्रमाण किया जाता है अथवा पावसे पौरुषी आदि का प्रमाण होता है उसे कालोपक्रम कहते हैं. // 12 // अहो भगवन् ! भावउपक्रम किसे कहते हैं ? अहो शिष्य ! भावउपक्रम के दो भेद कहे हैं तद्यथा-आगम से और नो आगम से. उस में शास्त्रादिक का उपयोग सहित अभ्यास करे सो आगम से भावोपक्रम और नो आगम से भावोपक्रम के दो भेद 8 आवश्यकपर-चार निक्ष842808 For Private and Personal Use Only