________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अर्थ 14 भव्य पथिक को सुख उत्पन्न करे, 3 पोंडरिक कमल सामान साधु वेष कर और यश रूप मुगंध कर 4 शोभित होवे, 4 कमल समान साधु उत्तम पुरुप रूप मूर्य चन्द्र कर विक्मित होवे, 5 कपल समान धु सदैव विक्सित (अवशी) रहे, 6 कमल सामान साधु तीर्थंकर की आज्ञा रूप सूर्य के सन्मुख रहे और 7 कमल समान साधु धर्म ध्यान शुक्ल ध्यान कर हृदय को पवित्र रखे // (11) रवि-23 'ह, सूर्य समान साधु होवे -1 सूर्य सामान साधु अपने ज्ञान रूप प्रकाश कर सम्यक्त्व ज्ञान को 30 प्रकाशे 2 सर्य सामान साधु भव्योजनों रूप कमल के वन को विकिपत करे, सूर्य सामान साधु अनादि मिथ्या रूप रात्री के अन्धकार को क्षीण में नाश करे. 4 सूर्य सामान साधु तपतेज कर प्रदीप्त रहे. 5 सूर्य सामान साधु अपने गुनों के तेज कर पांडीया रूप ग्रह नक्षत्र तारा के सेज को छिपावे, 6 सूर्य सामान साधु-क्रोध रूपी अग्नि / तेज का नाश करे और 7 सूर्य सामान साधु त्रीरत्न के सहश्र गुणों रूपी किरणों H चारों तीर्थ र विकारों शोभित रहे // (12) पवन-वायु सपान साधु होवे- वायु समान साधु सन शालोमा हारे, 2 वायु समान साधु अप्रतिवन्ध विहारी होवे. 3 वायु समान साधु द्रव्ये उपाधी से, मात्र कषाय से हलका रहे, 4 वाय समान साधु अनेक देशों में विहार करे. 5 वायु के समान सायु पुण्य पाप रूप सुरभिगंध दुरभिगंध को दूसरे को दर्शावे. 6 वायु समान साधु किस के रोके रहे नहीं और 7 वायु समान साधु संवेग वैराग्य रूप शीतलता की लहर कर विषय कषाय रूप ताप को निधारे शान्ति शान्ति बरतावे. इति 84 औपया * - एकोत्रिशचम-अनुयोगद्वार सूत्र-चतुर्थ 48048 प्रमाण विषय 988-887 For Private and Personal Use Only