________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आधबिजति पण्णविजति परूविजंति, दंसइ निदंसिजइ, उदासवइ, स त ससमय वत्तव्यया ते कि त परसमय वत्तब्धया? परम्समय वत्तव्यया जत्थणं परसमय आघविजति जाव उवदसिजति से तं परसमय वसवया // से किं तं ससमय परसमय वत्तव्वया ? ससमय परसमय वत्तव्बया-जत्थणं ससमय परसमए आघविजात जाव उवदांसजति. सेतं ससमय परसमय वत्तव्वया // 2 // इयाणिकोनउ कं वत्त अनुवादक बाल ब्रह्मचारी मान श्री अमोलक ऋषिजी - सूत्रों का संक्षेप में कहे. प्रज्ञपे विस्तार से प्ररूपना करे, दृष्टान्तादि कर दर्शावे. विशेष कर दर्शवे. परिषद में उपदशे. जैसे धर्मारित काथा ऐसा वहना सो आपविजात. गति लक्षण कहना प्रज्ञप्ता, असंख्यात प्रदेश कहना वह प्ररूपना. जल मच्छ का दृष्टान्त वह दर्शना, तैसीं धर्मास्ति काया एसा उपनय मिलाना वह निदर्शना. यथार्थ विस्तार व्याख्या वह उपदर्शना. यह स्वतःके समय की वक्तव्यता कहीं. // अहो भगवन् ! पर समय वक्तव्यता किसे कहते हैं ? ओ शिष्य ! जो अन्यमत के शान उक्त प्रकार सामान्य प्रकार कहे प्रज्ञपे, विस्तार से कहे, दृष्टान्त से सिद्ध करे, विशेष दर्शाने और उपदेशे. वह पर समय वक्तव्यता // अहो भगवन् ! स्व समय पर लमय वक्तव्यता किसे कहते में हैं ? अहो शिष्य ! जहां स्वतः के मत का और पर के मत का दोनों के मत का सामिल कथन कर * पज्ञपे विस्तार से कहे दृष्टान्त से दर्शाने, उपनय मिलावे. उपदेश दे वह स्व समय पर समय वक्तव्यता. * आकाशक-राजावहादुर लाला सुखदेवसहायजी-ज्वालाप्रसादनी For Private and Personal Use Only