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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 488-% संखेचणं आवलिया गुणिया, अन्नमन्नभासोरूवणो, उक्कोसयं जुत्ता संखजयं हाइ, अश्या जहन्नयं असंखेजा संखेजइंरूवृणो, उक्कोसयं जुत्ता संखेजइयं होइ / / जहन्नयं मेखे जा असंखेजई कित्तियं होइ, जहमरणं जुना संखेजएणं, आवलियागुणिया अन्न मन्नभासो पडिपुन्नो जहन्नयं असंस्बेजा संखेजय होइ, अहवा उकोसए जुत्ता असंखे जएरूवं पखित्तं जहन्नयं असंखेजा संखेजयं होइ, तेणपरं अजहन्नमणुकोसयाई ठागाइं जाव उक्कोमयं असंखेज्जा संखेजई ण पावति // उकोसयं असन्वे जा संखेजयं कित्तियं होड़ जहन्नयं असंखेजा संखेजई मेत्ताणं रासीणं होवे. इतने एक आवालिका के समय होये. इस के उपरान्त अजघन्योत्कृष्ट स्थानक यावत् जहां तक उत्कृष्ट य का असंख्यात नींपावेतहांतक. उत्कृष्ट युक्ता असंख्याते कितने होते हैं ? जघन्य यक्ता असंख्यात की राशीकोप स्पर गनाकार कर एक कम राशि उत्कृष्ट असंख्याते हो जघन्य असंख्यात असंख्याते कितने हे ते हैं? अ ध्य! जघन्य युक्ता असंख्यातेकी राशीको परस्पर गनाकार करने से जितने रूप होवे वे जघन्य असंA ख्य.ते असं ज्याते होवे.अथवा उत्कृष्ट युक्ता असंख्याते में एक प्रक्षेप करे वह जघन्य असंख्यात असंख्याता होवे. 16 उसके ऊपर अजयन्योत्कृष्ट स्थानक यावत् राष्ट असंख्यात असंख्याते इस में नहीं पाये. अहो भगवन्! कृष्ट असंख्यात 2 कितने होते हैं ? अहो शिष्य ! जयन्य असंख्पात संरूपात राशी को परस्पर एक शचम-अनयोगदार मृत्र चतुर्थ मूल है अर्थ 86% प्रमाण का विषय 43800-488 / For Private and Personal Use Only
SR No.020050
Book TitleAnuyogdwar Sutram
Original Sutra AuthorN/A
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Publisher
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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