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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तोमा एवं भणाहि अदकम्मभारणं भणास तो विसैसेउ भणाहि धम्मैअसे पदेसेय से पदेने धम्मे, अहम्मेय से 'पदेसेय, से पएसे अड़म्मे, आगामे अ सेपदेमेव मे पदेसे आगासे, जीवेअ सेपदसेय. से परसे नो जीवे, खंधेअ से पएसेय, से पएसे वह अधर्म पदेश. आकाश जो प्रदेश ते प्रदेश आकाश, नीर जो प्रदेश वे प्रदेश नो जीव. स्कन्ध में प्रदेश पे प्रदेश नो स्कन्ध एसा कहा. इस प्रकार बोलते हुये समधिरूढ को एवंभूत नय इस प्रकार बोला कि तू जो 2 धर्मास्ति कायादि वस्तु कहता है वो 2 सब देश प्रदेश कल्पमा रहित आत्म समरूपी संयुक्त उस के एक.पने से अवयव रहित एक नाम बोलाती वस्तु परंतु अनेक नाम बोलती हुई नहीं, इस लिये करे स्तिकायादिक वस्तु कहो परंतु प्रदेशादिक रूपपना मत कहो, क्यों कि देश प्रदेश मेरी अवस्तु Eप है. अखंड ही वस्तु के अस्तिकता मानमे से वह किस प्रकार है सो करते हैं-'पएसो वियवस्थ प्रदेश और प्रदेश का भेद है यहां जो प्रथम पक्ष ग्रहण करे तो भी मय अलग 2 भेट रूप देखना होवे वह भेद रूप तो देखाता नहीं है. और दूसरा अभेद रूप पक्ष ग्रहण करे तो धर्म शब्द और प्रदेश शब्द के पर्याय शब्दपना प्राप्त हवा इस लिये दोनों शब्द कर पर्याय 16 दोनों का तो बोलना सम काल में मिले नहीं क्यों कि एकही अर्थ के होने से दसर शब्द का निरर्थापना होवे इस लिये एक नाम से बोलाती वस्तु एक ही युक्ती से मिले. वह प्रदेश का दृष्टान्त संक्षेप में--पएसदिहूं. नैगमत्थणं पएसे अनुवादक बाल ब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक पिाजी *प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी For Private and Personal Use Only
SR No.020050
Book TitleAnuyogdwar Sutram
Original Sutra AuthorN/A
Author
Publisher
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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