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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नि श्री अमोलक ऋपिजी ण भवति. कम्हा ? जइते पंचविहो पएसो. एवं ते एकेको पएसो पंचविहो। एवं तेण पणवीसतिविहो पदेसो भवंति, तंमाभणाहिं पंचविही पदेसो भगाहिं, भइयव्यो पदेसो, सिय धम्मपएसो, सिय अधम्मपएसो, सिय आगारूपएसो, सिय जीव पएसो, सिय खंधपएसो, एवं वदंतं उज्जुसुत्तं संपतिसद्दनउ भणइ जं भणसि भइयव्यो पदेसो तं ण भवंति, कम्हा ? जइ भइयव्बोपएसो एवते. धम्मपएसोवि पाशक-राजावादादुर लाळा मुखदेवसहायजी ज्वालामसादजी. अनुवादक बाउन्नाचा जो देश का प्रदेश कहते हैं वह उस ही द्रव्य का प्रदेश है. इस लिये छठा भेद नहीं हुवा. यथा दृष्टान्त कर-किसी दासने मालक के वास्ते खर मो लिया. तब मालक बोला-यह दास भी मेरा और खर भी मेरा, यह दोनों पालक की वस्तु होवे, तैसे खन्ध प्रदेश और देश प्रदेश कहना. छ का प्रदेश तुमने कहा यह. पांच प्रदेश सद्यथा-धर्मास्ति काया का प्रदेश,अधर्मास्ति का ग का पर्देश, आकाशास्ति काया का प्रदेश,जीव का प्रदेश, और स्कन्ध का / प्रदेश. ऐसा बोलते हुवे संग्रह नक से व्यवहार नयवाला बोला जो तू कहता है कि पाच प्रदेश. यह नहीं होता। हे क्यों कि जिस लिये जैसे पांच गोष्टिले ( मित्र ) पुरुष का किसी के द्रव्य की जाति सामान्य हो. सद्या-चांदी, 2 मुवर्ण, 3 धन, 4 धान्य, तैसे पांच के प्रदेश, समावे एकत्र होवे इस लिये ना को पांच देश कहा. पांच प्रकार के प्रदेश को पांचों का प्रदेश ऐसा कहते तद्यथा-धर्मास्ति का प्रदेश, For Private and Personal Use Only
SR No.020050
Book TitleAnuyogdwar Sutram
Original Sutra AuthorN/A
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Publisher
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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