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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वेसुद्धो गमो भणइ पत्थय छिंदामि. तंच केइ तत्थसणं पासित्ता वदेजा किं भवं तच्छसि ? विसुद्धतरागो णेगमो भणति, पत्थयं तच्छेमि,तंच केइ उकीरमाणं पासिता बदेज्जा-किं भवं कीरसि ? विसुद्धतरागो णेगमो भणति, पत्थयओकारामि. संच केई लीहमाणं पासित्ता वएजा-किं भवं लिहसि ? विसुद्धतरागो णेगमो भणति. पत्थयलिहामि. एवं विसुद्धतर णेगमस्स नामाउतिय उपत्थउ, एवमेव ववहारस्सवि. 408 अनुवादक बाल ब्रह्मचारी मुनि श्रीअमोलक मापन - उस लकड को छीलता हुवा देख कोई पूछे क्या छीलता है ? सब विशुद्धतर नैगम नय वाला बोला पाथा छीलता हूं. उप्त ककड को कोरता हुवा देख कर पूछा तू क्या कोरता है? तब मिशुदतरागम नैगम नय चाला बोला-पाया कोरता हूं, उसे लिखता हुआ देख किसीने पूछा-तू क्या लिखता है ? सब विशुद्धतरागम नैगम नय वाला बोला-पाया लिखता हूं, इस प्रकार विशुद्धतरागम नैगम नय की| अपेक्षा से पाया हुवा. जैसा यह नैगम नय का कहा तैसा व्यवहार नय का भी कहना. 3 संग्रह नव के मत से सर्व प्रकार का धान का संग्रह किया पाथा में भर मपति करने के लिये रक्खा, धान से भरा पाया माने, 4 ऋजु मूत्र नयके मतसे धान्य मापतेको पाया माने, क्योंकि यह वर्तमान काळका ही मानने वाला है,और ऊपरकी तीनों शब्द नय समभीरुढनय और एवंभूत नय यह तीनों पाथाके जानने वाले को ही हैं। +प्रकाशक-राजबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी. For Private and Personal Use Only
SR No.020050
Book TitleAnuyogdwar Sutram
Original Sutra AuthorN/A
Author
Publisher
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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