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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मृत 488 मिच्छादिट्ठीहि, सच्छंद बुद्धिमति विगप्पियं तंजहा-रामायणं जाव चत्तारिवेया, संगोवंगा से तं लोइए // 84 // से किं तं लोगुनरिए ; लोगुत्तरिए जण्णं इमअरिहंते भगवंतेहिं उत्पन्न नाण दसण धरेहिं तीत पच्चपन्न गणागत जाणएहिं तेलुक्कबहिय महिय पूईएहिं सव्वहिं सम्बदरिसीहिं पणिय दुवालसंगं गणिपिडगं तंजहा-आयारो जाव दिट्ठिवाउ // 85 // अहया आगमे तिविहे पण्णत्ते तंजहा-सुत्तागमे, अत्थागमे, तदुभयागमे // अहवा मागमे अर्थ जो यह अज्ञानी मिथ्यात्व दृष्टी स्वच्छन्द बुद्धिवाले जिन के बताये शास्त्र तथथा- रामायन पावत्र जा चारों वेदों अंगोपांग सहित उन कि लोकिक आगम कहना // 84 // अहो भगक्न ! लोकोत्तर आगम किसे कहना ? अहो शिष्य ! लोकोत्तर आगम सो जो यह अरिहंत भगवंत केवल ज्ञान केवल दर्शन के धारक अतीत वर्तमान अनागत तीनों काल की बात के जानने तीनों लोक के जीवों के हितकर वंदनीक पूज्यनीक सर्वज्ञ सब दी उन के बनाये द्वादशांग आचार्य की पेटी समान तद्यथा-आचारांग यावत् दृष्टीवाद // 84 / / अथका आगम तीन प्रकार के कहे हैं तद्यथा-- सूभागम, 2 अर्थागम, और 3 उभ-0% 17'यागम. अथवा आगम तीत प्रकार के कहे : तद्यथा-१ मत्तागम-स्वयं के बनाये, 2 अनन्तरागम 48 एकाशित्तम-अनुयोगद्वार मूत्र-चतुर्य मूल. 48 प्रमाण का विषय 1.11 For Private and Personal Use Only
SR No.020050
Book TitleAnuyogdwar Sutram
Original Sutra AuthorN/A
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Publisher
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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