________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 296 अनुवादक बाल ब्रह्मचारी मुनि श्री उपोलक ऋषिजी गहण नित्तणाइ निप्फसरस च मंदणी सुक्काणिय कुड सर णदा दह तलागाइ पासित्ता तेणं सादिजइ जहा कुबुट्ठी आसी. से तं अतीत काल गहणं // से किं तं पडुपन्न काल गहणं ? पडुपन्न काल गहणं-साहु गोयरग्गगयं भिक्खं अलभमाणं पासित्ता तेणं साहिज्जड़ जहा दुभिक्खं वट्टइ, से तं पडुपन्न काल गहणं // स कि तं अणागय काल गहणं ? अणागय काल गहणं-धुमायंति दिसाउ / संझाविमेइणी, अपडिबुद्धा वाया, नेरइया खल कुबुढामेयनिवेयंती // अग्गेयं वा काल ग्रहण, 3 और अनागत काल ग्रहण. अहो भगवन्! अतीत काल ग्रहण किसे कहते हैं ? अहो शिष्य !' कोई विचक्षण पुरुष रास्ते में गमन करता तृण रहित पृथ्वी को देखे, मुके हुवे कुंड नदी तलावादि जला शय को देखे, इत्यादि देख अनुमान करे कि यहाँ गत काल में वृष्टि अच्छी नहीं हुई है. यह अतीत काल का ग्रहण कहा. अहो भगवन् ! प्रत्युत्पन्न काल का ग्रहण किसे कहते हैं ? अहो शिष्य ! प्रत्युत्पन्न / काल का ग्रहण सो-कोई विचक्षण साधु गोचरी गये बहुत परिभ्रमण करते ही भीक्षा की प्रतिपूर्ण प्राप्ति नहीं हुई, उस से अनुमान करे कि वर्तमान में यहां दुर्भिक्ष होता देखाता है. अहो भगवन्! अनागत काल का ग्रहण किस को कहते हैं ? अहो शिष्य ! दिशाओं में धूंधलता देखे. सन्ध्या तेज रहित देखे, अप्रमाण है। प्रकाशक राजाबहादुर काला सुखदवसहायजी-ज्वालाप्रसादजी For Private and Personal Use Only