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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 281 अनुवादक बाल ब्रह्मचारी मुनि श्रीअमोलक ऋषज जहा एतोस चेव, वेउन्विय सरीरा तहा भाणियव्वा, से तं मुहुम खेत्त पलिओवमे। सेत्तं पलिओवमे।से तं विभाग निष्फन्ने॥सेत्तं कालप्पमाणे॥६३॥सेकिंतं भावप्पमाणे ? भावप्पमाणे तिविहा पण्णत्ता तंजहा-गुणप्पमाणे, नयप्पमाणे, संखप्पमाणे // 6 // से किं तं गुणप्पमाणे ? गुणप्पमाणे दुविहे पणत्ते तंजहा-जीव गुणप्पमाणे अजीवगुणप्पमाणे / से किंतं अजविगुणप्पमाणे ? अजीवगुणप्पमाणे पंचविहे पण्णत्ते तंजहा-वण्णगुणप्पमाणे,गंधगुणप्पमाणे,रसगुणप्पमाणे,फासगुणप्पमाणे,संट्ठाण गुणप्प माणं सेकिंतं वण्ण गुणप्पमाणे?वण्णगुणप्पमाणे पंचविहा पत्ता तंजहा कालगुणप्पमाणे कार्माण शरीरका जैसा इन का वैक्रेय शरीरका कहा तैसा करना. यह मूक्ष्म क्षेत्र पल्योपम का कथन हुवा, यह क्षेत्र पल्पोपम और पल्योपम का कथन पूर्ण हवा. तैसे ही विभाग निष्पन्न का और काल प्रमाण का भो कथन हुवा // 63 // अहो भगवन् ! भाव प्रमाण किसे कहते हैं ? अहो शिष्य ! भाव प्रमाण के तीन प्रकार कहे हैं तद्यथा-१ गुन प्रमाण,२ नय प्रमाण,और 3 संख्या प्रमाण॥३४॥अहो भगवन् !गुनममाण किसे कहते हैं? अहो गौतम! गुन प्रमाण के दो भेद कहे हैं तद्यथा-जीवगुन प्रमान और अजीव गुनपमाण. अहो भगवन् ! अजीव गुन प्रमाण किसे कहते हैं ? अहो शिष्य ! अजीव गुन प्रमाण के पांच प्रकार कहे हैं. 'तप्रथा-१ वर्ण गुन प्रमाण, 2 गंध गुन प्रमाण, 3 रस गुन प्रमाण, 4 स्पर्श गुन प्रमाण, और प्रकाशक-राजाबाहादुर लाला मुखदेवसहायजी मालावताद / For Private and Personal Use Only
SR No.020050
Book TitleAnuyogdwar Sutram
Original Sutra AuthorN/A
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Publisher
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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