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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अहवणं छट्ठावग्गो पंचमवग्ग पडपन्न अहवणं छणउइछे अणगहायरासी उक्कोसपदे असंखेज्जा असंखेजाहिं उसप्पिणी ओसाप्पणीहि अवहरिंति कालतो, खेत्तओ उक्कोसेणं रूवं पक्खित्तेहिं मणुस्सेणं सेढी अवहीरइ तीसे सेढीए कालखेत्तेहिं अवहीरोममगिज्जइ कालतो असंखिजाहि उसप्पिणी ओसप्पिणीहिं खेत्तओ अंगुल / 4 अनुवादक बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी मूल. 429496729644294967296=18446762514264337593543980336 यह है छठा वर्ग मूल.उक्त पांचवे वर्ग:मूलसे छठे वर्ग मूलका गुनाकार करे तब 29 अंक आने हैं, अब 96 वक्त उसका छेद होता है वह कहते हैं-प्रथम 4 के वर्ग में दो छेदांक, दूसरे 16 वर्ग में 4 छेड़ांक, तीसरे वर्ग में, 8 छेदांक, चौथे वर्ग में 16 छेदांक, पांचवे वर्म में 32 छेदांक, छठे वर्ग में 4 छेदांक, पांचने वर्ग को छठे वर्ग के साथ गुने इस रिये पांचवे वर्ग में छठे वर्ग के छेदांक समा गये. तब 96 छेदांक होवे. (राशी के अंक का छेदन करते अन्त में प्रतिपूर्ण अंक आवे उसे छेदांक कहने हैं, यह 20 अंक होते , यह 29 अंक मितने जघन्य पद में मनुष्य हैं.) उत्कृष्ट पद में असंख्यात मनुष्य हैं. उन्हे एकेक समय में एकेक हरण करते असंख्यात उत्सर्पिणी अवसर्पिणी वीत जावे यह काल से, और क्षेत्र से उत्कृष्ट रूप प्रक्षिप्त उन मनुष्य करके एक आकाश श्रेणि का अपहरण करे काल से असंख्यात उत्सर्पिर्ण *प्रकाशक-राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी For Private and Personal Use Only
SR No.020050
Book TitleAnuyogdwar Sutram
Original Sutra AuthorN/A
Author
Publisher
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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