________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 488 अणुत्तरोववाइयदसाओ, पाहावागरणाई, विवागसुयं, दिठिवाओय, सेतं लोउत्तरियं नो आगमतो भाव सुयं // सेतं नो आगमतो भावसुयं // से तं भावसुयं // 4 // तस्सणं इमे एगट्टिया णाणाघोसा णाणावंजणानामधेजा भवंतितंजहा(गाह)सुयं सुत्तं गंथ सिंडति सासणं आणत्ति. वयण उवएसो // पण्णवणे आगमेऽवियएगट्ठा पज्जवासुत्ते // 1 // सेतं सुयं // 42 // * // से किं तं खंधे ? खंधे चउबिहे पण्णत्ते अर्थ 7 उपासक दशांग, 8 अंतकृत दशांग, 9 अनुत्नरोपपातिक दशांग, 10 प्रश्न व्याकरण. 11 रिपाक और 12 दृष्टिवाद. यह लोकोत्तर नो आगम भाव श्रुत हुवा. श्रुत शब्द पर यह चार निक्षेप हुए // 41 // LE श्रत के दश नाम कहते हैं-यह श्रुत पद एकार्थ वाची, अनेक घोष व अनेक व्यंजनवाला है. इन के नाम से कहते हैं-१ श्रुत गुरु आदि के मुख से श्रवण कर धारन किया जावे, 2 सूत्र-अर्थ परमार्थ की सुचना रूप, #3 ग्रंथ-अनेक भाव भेदना का ग्रंथन, 4 सिद्धांत-स्वतः के गुन से सिद्ध बना हुवा या निश्चय ज्ञान का दर्शक. 5 शासन-हितशिक्षा या कर्म दंड का दाता, 6 आज्ञक-जिनाज्ञा या मोक्ष पथ का दर्शक, E7 वचन-सद्धोध या सत्य कथन करनेवाला, 8 उपदेश-हिताहित दर्शक अथवा न्याय पथ में स्थापक, 9 प्रज्ञप-प्रवचन सद्बुद्धि द्वारा प्रकाशक अथवा अन्य नहीं कह सके वैसा उत्कृष्ट प्रधान बचन कहने-0 बाला और 10 आगम-जिन प्रणित परंपरा से चला आता. यह एकार्थवाची भाव श्रुत के नाम कहे || * यह श्रुत का अधिकार संपूर्ण हुवा // 2 // 42 // * // अब स्कंध शब्द पर चार निक्षेप कहते हैं एकत्रिंशत्तम-अनुयोगद्वार सूत्र-चतुर्य मूल-987 श्रुत पर चार निक्षेपे 8 498 For Private and Personal Use Only