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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 88% 275 एकत्रिंशत्तम अनुयोगद्वार सूत्र-चतुर्थ मूल * गोयमा ! दुविहा पण्णता तंजहा-बंद्धेलगाय, मुकेलगाय, तत्थणं जे ते बंडेलगा देणं असंखेजा समए 2 अवहीरमाणा 2 खत्त पलिओवमस्स असंखिजइ भागमेत्तेणं कालेणं अबही म्मि णो चेवणं अवहिरियासिया, मुक्केलया उब्विय सरीराय आहक सरािय जहा पुढवीकाइयाणं तहा भाणियव्वा,तेयग कम्म सरीराय पुढवी काइयाण तहा भाणियब्वा वणस्सइ काइयाणं ओरालियवे उब्विय आहारग सरीरा जहा पुढी काइयाणं तहा भाणियब्वा, वणस्सइ काइयाणं भंते! केवइया तेयग कम्म सरीरा पण्णता?गोयमा दुविहा पण्णत्ता तंजहा-बंडेलगाय मुक्केलगाय.जहा ओहिया तेयग़ कम्म सरीरा तहा वणस्सति काइयाणवि, तेयग कम्म सरीरा भाणियव्वा // 57 // बंधेलक और मकेलक. उस में जो बंधेलक हैं वे असंख्यात हैं एकेक समय में एकेक हरण करते पल्योपम के असंख्यातवे भाग में जितने आकाश प्रदेश आवे इतने काल में हरण करे तो भी होवे नहीं. और मूकेलक वैकेय शरीर आहारक शरीर जैसे पृथ्वी काया का कहा तैसा कहना. सैसे ही तेजस कार्माण शरीर का भी पृथ्वी काया के जैसा ही कहना. वनस्पति काया में औदारिक शरीर वैक्रेय शरीर आहारक शरीर जैसा पृथ्वीकाया का कहा तैसा कहना. और तैजस कार्माण शरीर दो प्रकार के हैं बंधेलक और मूकेलक. इस का कथन जैसा औधिक तेजस कार्माण का कहा तैसा ही कहना // 57 // ' 88% प्रमाण का विषय 48488 < For Private and Personal Use Only
SR No.020050
Book TitleAnuyogdwar Sutram
Original Sutra AuthorN/A
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Publisher
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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