________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सत्र अनुवादक बाल ब्रह्मचारी मुनि श्रीअमोलक शीपना+ वयासी-अत्थिणं तस्स पलुस्स आगास पदेसा जेणं तेहिं वालग्गेहि भणपुन्ना ? हंता अस्थि, अहा को दिट्ठतो ? से जहा णामए मंचएसिया कोहडाणं भरिते तत्थणं माउलिंगा पक्खित्ता तेविमाया, तत्थणं विल्लापक्खित्ता तेवि माया, तत्थणं आमलगा खित्ता तेविमाया, तत्थणं वयरा पखित्ता तेवि माया, तत्थण चणगापखित्ता तेवि माया, तत्थणं मुग्गा पखित्त ते विमाया, तत्थणं सरीसवा पखित्ता ते वि माया, तत्थणं गंगावालुया पखित्ता सावि माया, एवमेव एतेणं दिटुंतेणं आत्थणं मी आकाश प्रदेश रहे हैं. जब आकाश प्रदेशों में से एकेक समय में एकेक आकाश प्रदेश निकाले, यो निकालते 2 जितने काल में वह पाल, खाली हो यावत् साफ होवे एक भी आकाश प्रदेश पस में न रहे उसे सूक्ष्म क्षेत्र पल्योपम कहना. तब शिष्य शंका का प्रेरा हुवा गुरु से प्रश्न किया कि-अहो भगवन् ! उस पाले में ऐसे भी आकाश प्रदेश रहे हैं कि जिन को बालाग्र का स्पर्शे नहीं हुवा ? गुरु बोले-हां शिष्य ! एक बालात्र से दूसरे बालान के बीच में असंख्यात आकाश प्रदेश ऐसे हैं कि जो चालान को स्पर्श नहीं हैं. अहो भगवन् ! यह कथन किस दृष्टांत कर माना जावे ? अहो शिष्य ! यथा दृष्टांत किसी कोठार में कुष्माणु (कोला) फल भरे हों उस में मातलिंग (विजोरा) का प्रक्षेप करे तो उन का उस में समावेश होजावे. उस में बिल्ल फल का प्रक्षेप करे तो वे भी उस में समाजावे प्रकाशक-राजाबाहादुर लाका मुखदेवस हायजी ज्वालामसादज For Private and Personal Use Only