________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तं आगमतो भावसुयं ? आगमतो भावसुयं-जाणए उवउत्ते सेत्तं आगमतो भावसुय // 38 // से किं तं नो आगमतो भावसुयं?नो आगमतो भावसुयं-दुविहं पण्णत्तं तंजहा. लोइयं, लोगुचरियं च // 39 // से किं तं लोइयं नो आगमतो भावसुयं ? B लोइयं नो आगमतो भावसुयं, जं इमे अण्णाणिएहि मिच्छादिट्ठीएहि सच्छंरबुद्धिमइ विगप्पियं तनहा-भारहं, रामायणं, भीमासुरुक्ख, कोडिल्लयं, घोडयमुहं, सगड भदियाओ, कप्पसियं, णागसुहुमं केणगसत्तरीवेसियं, वइसेसियं, बुद्धसासणं, मर्थ श्रुत किसे कहते हैं ? अहो शिष्य ! उपयोग सहित अर्थ परमार्थ का ज्ञाता हो श्रुत का पठन करे वह -भाव श्रुत कहा जाता है. यह आगम से भाव श्रुत का कथन हुवा // 38 // अहो भगवन् ! नो आगम से भाव श्रुत किसे कहते हैं ? अहो शिष्य ! नो आगम से भाव श्रुत के दो भेद कहे हैं. लौकिक व लोको तर // 39 // अहो मगवन् ! लौकिक नो आगम से भाव श्रुत किसे कहते हैं ? अहो शिष्य ! अज्ञानी मिथ्यादृष्टियोंने अपनी स्वच्छंदता से व मति कल्पना से जो 1 भारत, 2 रामायण, 3 भीमसु-१ युक्त, 4 कौटित्य, 5 पोटज सूत्र, 6 सगड भद्र, 7 कल्पाकल्प, 8 नाग मूक्ष्म, 9 कनक सत्तरी, 10 वैरोसिका, 11 बुद्ध वचन, 12 कपिल, 13 वैशिक, 14 लोकायत, 15 साठ तंत्र, 16 मादर, गिद्वार मूत्र चतुर्थ 389 श्रुत पर चार निक्षेपे - For Private and Personal Use Only