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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir %2 - एकत्रिंशत्तम-अनुयोगद्वार मूत्र-चतुर्थ मूल. एगुणवीसं सागरोवमाइं, पणए कप्पे ? जहण्णेणं एगुणवीसं सागरोवमाई; उक्कोसं वीसं सागरोवमाई, आरणे ? जहणणं वींसं सागरोवमाइं उक्कोस इगवीसं सागरोवमाई.अच्चए ? जहणण एकवीसं सागरोवमाई उक्कोसं वावी सागरोवमाई: हेटिय हेट्रिमगेवेज विमाणेसुणं भंते ! देवाणं केवतिय कालं ठिती पत्ता ? गोयमः ! जहणं चावीसं सागरोबमाइं, उक्कोसेणं तीवीसं सागरोवमाई. इंटिम माझिमगे बेज्जविमाणेसुणं ? गोयमा! जहन्नतेवीसं सागरोवभाई उक्कोसं चउवीस सागरोषभाई, हेट्ठिम उवरिम गेविज देवाणं ? जहण्णेणं चउवीस सारगोवमाइ उक्कोसेणं पणवीस सागरोवमाइ,मझिम हट्ठिम गेबिजग देवागं? जहण्णेणं पणबीस सागरोवमाइ, उक्कोसेणं सागरोपम की. अच्युत देवलोक के देवों की जघन्य इक्की त सागरोपम की उत्कृष्ट बावीस सागरोपम की. नीचे के नीचे के ग्रैबेथक देवता की जघन्य वाचीस सागरोपम की उत्कृष्ट तेवीस सागरोपम की, नीचे के मध्य के वेयक के देवों की जघन्य तेवीस सागगेपम की उत्कृष्ट चौवीस सागरोपम की. नीचे के ऊपर के ग्रैधेयक के देवता की जघन्य चौबीस सागरोपम की उत्कृष्ट पच्चीस सागरोपम की. मध्य के नीचे के ग्रेवेयक के देवता की जघन्य पच्चीस सागरोपम की उत्कृष्ट छवीस सागरोपम की. मध्य के रुपध्य की वेयक के देवता की जघन्य छबीस सामरोपम की उत्कृष्ट सत्तावीस सागरोपम की, मध्य अर्थ प्रमाण का विषय 138*488 For Private and Personal Use Only
SR No.020050
Book TitleAnuyogdwar Sutram
Original Sutra AuthorN/A
Author
Publisher
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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