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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 4882486 Har एकत्रिंशत्तम-अनुयोगद्वार सूत्र-चतुर्थ मूस 8883 पजचग गब्भवतिय खहयर पुच्छा? गोयमा ! जहण्णेणं अंगुलस्स असखेजतिभागं उक्कोसेणं धणु पहुत्तं // एत्थ संगहाणि गाहाउ भवंति तंजहा ( गाहा ) सहरस गाउय पुहुत्तं, ततोय जोयण पुहु तं // दोण्हं तु धणुपुहुत्तं समुच्छिमे होइ उच्चत्तं // 1 // जोयण सहस्स गाउयाई, तत्तोय जोयण सहस्सं || गाउय पुहुत्तं भुयगे, पखीसंभवेधणुपुहुतं // 2 // 19 // मणुस्साण भंते ! के महालिया सरीरो गाहणा पणता ? गोयमा ! जहण्णेणं अंगुलस्स असंखजति भागं उकोसणं तिण्णि गाउयाई, समुच्छिम मणुस्साणं पुच्छा ? गोयमा ! जहण्णेणं अंगुलम्स असंखेजति भागं.उक्कोसेणंवि अंगुलस्सवि असंखेज्जति भागं गभवकंतिय मणुस्साणं पुच्छा ? गोयमा! जहण्णेणं अंगुलस्स असंखज्जइ भागो, उक्कोसेणं तिण्णि गाउयाई योजन की, चतुष्पद की पृथक्त्व गाऊ की, उरपर की पृथक्त्व योजन की, भुजपर की और खेचर की पृथक्त्व धनुष्य की. अब गर्भज की अवगाहना कहते हैं. जलचर की हजार योजन की. स्थ रचर की छ गाउ की, उरपर की हजार योजन की, भुनपर की पृथक्त्व गाउ की और खेचर की पृथक्त्व धनुष्य की. // 19 // अब मनुष्य की अवगाहना कहते हैं. समुचय मनुष्य की जघन्य अंगुल 4 के असंख्यातवे भाग उत्कृष् तीन गाउ की. समूच्छिम मनुष्य की जघन्य अंगुल के असंख्यात भाग उत्ष्ट भी अंगुल के असंख्यातवे भाग, गर्भज मनुष्य की जघन्य अंगुलके असंख्यात अर्थ प्रमाण का विषय 380046 For Private and Personal Use Only
SR No.020050
Book TitleAnuyogdwar Sutram
Original Sutra AuthorN/A
Author
Publisher
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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